पिहोवा का सरस्वती तीर्थ: मोक्ष का अद्भुत केंद्र
पिहोवा का धार्मिक महत्व
हरियाणा के कुरुक्षेत्र स्थित पिहोवा का सरस्वती तीर्थ एवं सन्निहित सरोवर भारतीय संस्कृति और आस्था का एक महत्वपूर्ण स्थल है। यहाँ पितरों की शांति और मुक्ति के लिए पिंडदान और श्राद्ध कर्म की परंपरा सदियों से चली आ रही है।
यहाँ धार्मिक मान्यता है कि इस स्थान पर किए गए कर्मकांड से मृत आत्माओं को मोक्ष प्राप्त होता है, जिससे वे जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं।
पिहोवा के पुरोहितों के पास महाभारत काल से जुड़ी वंशावलियां सुरक्षित हैं, जिनके आधार पर वे पीढ़ियों से श्राद्ध कर्म का आयोजन करते आ रहे हैं।
महाभारत में पिहोवा का उल्लेख
महाभारत में कहा गया है कि 'पुण्यामाहु कुरुक्षेत्र कुरुक्षेत्रात्सरस्वती, सरस्वत्माश्च तीर्थानि तीर्थेभ्यश्च पृथुदकम्'। इसका अर्थ है कि कुरुक्षेत्र नगरी पवित्र है, सरस्वती तीर्थ उससे भी पवित्र है और पृथूदक, अर्थात वर्तमान पिहोवा, इन सबमें सर्वश्रेष्ठ है।
वामन पुराण में उल्लेख है कि गंगा, यमुना, नर्मदा और सिंधु नदियों के स्नान का फल केवल पिहोवा में ही प्राप्त होता है।
सरस्वती नदी का महत्व
यह माना जाता है कि सरस्वती नदी का जल पीने से मोक्ष मिलता है। यदि कोई व्यक्ति बारह माह तक इसका सेवन करता है, तो उसे देवगुरु बृहस्पति जैसी विद्या और शक्ति प्राप्त होती है। राजा ययाति ने भी यहाँ सौ यज्ञ किए थे।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो साधक यहाँ सरस्वती सरोवर के तट पर जप करते हुए देह त्याग करता है, वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर परम गति को प्राप्त करता है।
पिहोवा की अद्वितीयता
कहा जाता है कि गंगा के जल में अस्थि प्रवाह से मुक्ति होती है, और काशी में मृत्यु होने से मोक्ष प्राप्त होता है, लेकिन पिहोवा तीर्थ की महत्ता इससे भी अधिक है। यहाँ जल, स्थल या आकाश में मृत्यु होने पर भी मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पुराणों के अनुसार, इस तीर्थ की रचना स्वयं प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि के आरंभ में की थी। पृथुदक शब्द का संबंध महाराजा पृथु से जोड़ा जाता है, जिन्होंने अपने पिता का श्राद्ध यहीं किया था।
महाभारत युद्ध के बाद की परंपरा
महाभारत युद्ध के बाद, युधिष्ठिर ने लाखों अकाल मृत्यु प्राप्त लोगों की आत्मा को लेकर चिंता व्यक्त की। श्रीकृष्ण ने पिहोवा में सरस्वती तीर्थ पर दीपक जलाया, और युधिष्ठिर ने उस दीपक में तेल अर्पित किया। आज भी श्रद्धालु इस परंपरा को निभाते हैं।
पिहोवा का कार्तिकेय मंदिर भी प्रसिद्ध है, जहाँ स्त्रियों का प्रवेश वर्जित माना जाता है।
श्राद्ध और पिंडदान की परंपरा
लोग मानते हैं कि पिहोवा में प्रेतबाधा और अकाल मृत्यु से उत्पन्न दोषों का निवारण होता है। यहाँ श्राद्ध और पिंडदान करने से मृतक को सद्गति मिलती है।
वामन पुराण के अनुसार, भगवान शंकर ने भी पिहोवा में स्नान किया था, जिससे यहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ हमेशा बनी रहती है।