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प्रधानमंत्री मोदी ने एंटीबायोटिक्स के गलत इस्तेमाल पर जताई चिंता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एंटीबायोटिक्स के अनुचित उपयोग और इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में बताया कि डॉक्टर की सलाह के बिना एंटीबायोटिक्स का उपयोग स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह समस्या भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। जानें इस मुद्दे पर और क्या कहते हैं स्वास्थ्य विशेषज्ञ और पीएम मोदी की चेतावनी का क्या महत्व है।
 

एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस का बढ़ता खतरा


रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एंटीबायोटिक्स के अनुचित उपयोग और इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस के मुद्दे पर गहरी चिंता व्यक्त की। अपने रेडियो शो 'मन की बात' में उन्होंने स्पष्ट किया कि "एंटीबायोटिक्स ऐसी दवाएं नहीं हैं जिन्हें बिना उचित सलाह के लिया जाए।"


प्रधानमंत्री ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की हालिया रिपोर्ट का उल्लेख किया, जिसमें बताया गया है कि निमोनिया और यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन जैसी सामान्य बीमारियों के खिलाफ कई एंटीबायोटिक्स अब प्रभावी नहीं रह गई हैं। उन्होंने कहा कि यह स्थिति सभी के लिए चिंता का विषय है और यदि इसे समय पर नहीं संभाला गया, तो उपचार और भी कठिन हो जाएगा।


पीएम मोदी की चेतावनी

पीएम मोदी ने बताया कि डॉक्टर की सलाह के बिना एंटीबायोटिक्स का उपयोग इस समस्या का मुख्य कारण है। उन्होंने चेतावनी दी कि यह सोच कि "एक गोली हर बीमारी का इलाज कर देगी" संक्रमण को दवाओं से भी अधिक मजबूत बना रही है। इससे बैक्टीरिया दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो रहे हैं। उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे खुद से दवा लेने, विशेषकर एंटीबायोटिक्स लेने से बचें। प्रधानमंत्री ने कहा कि किसी भी बीमारी के लिए दवा लेने से पहले डॉक्टर से सलाह लेना अनिवार्य है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जिम्मेदारी से दवाओं का उपयोग न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए, बल्कि समाज के लिए भी आवश्यक है, ताकि जीवन रक्षक दवाओं का प्रभाव बना रहे।


विशेषज्ञों की राय

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने पहले ही चेतावनी दी है कि एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस भारत की सबसे बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक बनती जा रही है। ICMR के अनुसार, बिना प्रिस्क्रिप्शन के एंटीबायोटिक्स का उपयोग इस समस्या को तेजी से बढ़ा रहा है, जिससे सामान्य संक्रमण का इलाज भी कठिन हो सकता है।


जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. अरुण सिद्राम खरात ने कहा कि एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस 21वीं सदी के सबसे बड़े वैश्विक स्वास्थ्य खतरों में से एक बन गया है। उन्होंने बताया कि एंटीबायोटिक्स का अनुचित उपयोग उपचार में देरी करता है, लागत बढ़ाता है, और डॉक्टरों को अधिक प्रभावी दवाओं का उपयोग करने के लिए मजबूर करता है, जिनके गंभीर साइड इफेक्ट हो सकते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि समय पर ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो 2050 तक एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस दुनिया भर में मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक बन सकता है। इसलिए, हमें इसके उपयोग में अत्यधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है, क्योंकि इसके परिणाम हानिकारक हो सकते हैं।