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प्रेग्नेंट महिलाओं और नवजात शिशुओं पर वायु प्रदूषण का प्रभाव

वायु प्रदूषण का गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है, जिससे प्रीमैच्योर डिलीवरी की घटनाएं बढ़ रही हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, प्रदूषण के कारण गर्भ में पल रहे बच्चों को भी खतरा है। जानें इस समस्या के कारण और इससे बचने के उपाय।
 

प्रदूषण का असर

वायु प्रदूषण का प्रभाव गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं पर गंभीर रूप से पड़ रहा है। इसके परिणामस्वरूप प्रीमैच्योर डिलीवरी की घटनाएं बढ़ रही हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, पिछले एक वर्ष में 13,500 डिलीवरी में से 18% यानी 2,430 बच्चे प्रीमैच्योर थे। इसका मुख्य कारण प्रदूषण है, जो हवा में मौजूद जहरीले तत्वों के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर रहा है। यह रक्त में मिलकर गर्भ में पल रहे बच्चे तक पहुंचता है। खराब वायु गुणवत्ता के कारण खांसी, जुकाम और अस्थमा जैसी समस्याएं भी बढ़ गई हैं।


गर्भ में पलने वाले बच्चे के लिए खतरा

यह स्थिति न केवल गर्भवती महिलाओं के लिए, बल्कि गर्भ में पल रहे बच्चों के लिए भी हानिकारक है। लगातार खांसी का असर गर्भ पर पड़ता है, जिससे बच्चे के समय से पहले जन्म लेने की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा, मलेरिया, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और डेंगू जैसी बीमारियों के कारण भी समय से पहले जन्म लेने का खतरा रहता है।


प्रीमैच्योर डिलीवरी की पहचान

विशेषज्ञों के अनुसार, 36 सप्ताह से पहले जन्मे बच्चों को प्रीमैच्योर माना जाता है। कुछ बच्चे 28 सप्ताह में, जबकि अन्य 28 से 32 सप्ताह और 37 सप्ताह से पहले जन्म लेते हैं। 34 से 36 सप्ताह के बीच जन्मे बच्चों को आमतौर पर अधिक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है। जन्म के समय से जितना पहले बच्चा जन्म लेता है, जोखिम उतना ही बढ़ जाता है।


सावधानी बरतने के उपाय

विशेषज्ञों का कहना है कि नियमित जांच और डॉक्टर की सलाह से दवा लेकर प्रीमैच्योर डिलीवरी की घटनाओं को कम किया जा सकता है। एनीमिया से ग्रस्त महिलाएं जागरूक रहकर प्रीमैच्योर डिलीवरी से बच सकती हैं। दूध, हरी सब्जियां और लस्सी का सेवन करके महिलाएं पोषण की कमी को पूरा कर सकती हैं।


समय से पहले जन्मे बच्चों की समस्याएं

समय से पहले जन्मे बच्चे बाहरी तापमान को सहन नहीं कर पाते हैं। इनमें हाइपरग्लेसेमिया, हाइपोथर्मिया, पीलिया और संक्रमण का खतरा अधिक होता है। ऐसे बच्चों को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। कमजोर होने के कारण, बच्चे की रेटिना यानी देखने की क्षमता में कमी आ सकती है, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। यदि बचपन में ध्यान नहीं दिया गया, तो बच्चे का आईक्यू भी प्रभावित हो सकता है।


प्रदूषण का गर्भवती महिलाओं पर प्रभाव

यह ध्यान देने योग्य है कि प्रदूषण गर्भवती महिलाओं में प्रीमैच्योर डिलीवरी का कारण बन सकता है। प्रदूषण के कारण महिलाओं को संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है। स्वास्थ्य में गिरावट के कारण महिलाएं उचित पोषण नहीं ले पातीं, जिससे उनकी इम्यूनिटी कम हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप, शरीर में प्रोटीन और विटामिन जैसे पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे को भी पोषण नहीं मिल पाता। प्रदूषण के कारण प्लेसेंटा बच्चे तक ऑक्सीजन नहीं पहुंचा पाता है।