ब्रेन ट्यूमर: भारत में बढ़ते मामलों की गंभीरता और पहचान की चुनौतियाँ
विश्व ब्रेन ट्यूमर दिवस पर जागरूकता
विश्व ब्रेन ट्यूमर दिवस: भारत में ब्रेन ट्यूमर के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि लोगों में इसके प्रति जागरूकता की कमी के कारण समय पर पहचान नहीं हो पाती है। सिरदर्द, भूलने की आदत, चक्कर आना या अचानक गिर जाना जैसे सामान्य लक्षण कभी-कभी ब्रेन ट्यूमर का संकेत हो सकते हैं, लेकिन लोग अक्सर इन्हें सामान्य तनाव या मानसिक थकान समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। यही कारण है कि मरीज डॉक्टरों के पास तब पहुंचते हैं जब बीमारी पहले से ही काफी बढ़ चुकी होती है। आइए जानते हैं कि इस विषय पर फोर्टिस अस्पताल के प्रमुख न्यूरोलॉजिस्ट, डॉ. प्रवीण गुप्ता का क्या कहना है।
पहचान की कठिनाई
डॉ. प्रवीण गुप्ता के अनुसार, ब्रेन ट्यूमर की पहचान प्रारंभिक चरण में बेहद कठिन होती है, क्योंकि इसके लक्षण सामान्य बीमारियों के समान होते हैं। जब तक मरीज हमारे पास आते हैं, तब तक ट्यूमर मस्तिष्क पर गंभीर प्रभाव डाल चुका होता है। डॉ. गुप्ता बताते हैं कि समय पर पहचान ही हमारी सबसे बड़ी ताकत हो सकती है। ब्रेन ट्यूमर दो प्रकार के होते हैं: प्राथमिक, जो सीधे मस्तिष्क में उत्पन्न होते हैं, और मेटास्टेटिक, जो शरीर के किसी अन्य हिस्से के कैंसर से मस्तिष्क में फैलते हैं।
आंकड़ों की सच्चाई
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर ब्रेन ट्यूमर की औसत दर प्रति 1 लाख लोगों में 10 है। भारत में यह दर 5 से 10 के बीच मानी जाती है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह आंकड़ा वास्तविकता से कम हो सकता है, क्योंकि कई मामलों की रिपोर्टिंग नहीं होती है और ग्रामीण क्षेत्रों में न्यूरो इमेजिंग की सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। अंतरराष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री के अनुसार, भारत में हर साल 28,000 से अधिक ब्रेन ट्यूमर के मामले दर्ज होते हैं।
युवाओं में बढ़ते मामले
आकाश हेल्थ केयर के डॉ. मधुकर भारद्वाज का कहना है कि अब युवाओं में भी ब्रेन ट्यूमर के मामले बढ़ रहे हैं, जो और भी चिंताजनक है। उन्होंने बताया कि दौरे पड़ना, धुंधली दृष्टि, संतुलन खोना, उल्टी, याददाश्त में कमी और स्वभाव में बदलाव जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। डॉक्टर के अनुसार, कई बार लोग इन लक्षणों को सामान्य मानसिक या न्यूरोलॉजिकल समस्याएं समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। वहीं, डॉ. रुचि सिंह बताती हैं कि जब तक मरीज अस्पताल पहुंचते हैं, तब तक इलाज मुश्किल और महंगा हो चुका होता है, जिसमें रेडिएशन, कीमोथेरेपी और सर्जरी जैसी प्रक्रियाएं शामिल होती हैं।
विशेषज्ञों की सलाह
विशेषज्ञों ने सरकार और स्वास्थ्य संगठनों से अपील की है कि देश के छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में ब्रेन ट्यूमर की पहचान और इलाज के लिए सुविधाएं बढ़ाई जानी चाहिए। अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में इलाज संभव है, लेकिन वहां मरीज बहुत देर से पहुंचते हैं। एमआरआई और सीटी स्कैन से समय पर ट्यूमर की पहचान हो सकती है, लेकिन लोगों में इन प्रक्रियाओं के प्रति जागरूकता की कमी के कारण लोग देर से इलाज कराते हैं।