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भारत में बादल फटने की घटनाएं: क्या हैं इसके कारण और प्रभाव?

भारत में बादल फटने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं, विशेषकर हिमालयी क्षेत्रों में। ये घटनाएं अचानक भारी बारिश का कारण बनती हैं, जिससे बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाएं आती हैं। जानें इसके पीछे के कारण, जैसे जलवायु परिवर्तन, भौगोलिक स्थितियां और मानवीय गतिविधियां। इसके साथ ही, जानें इन घटनाओं के प्रभाव और भारत में हुई प्रमुख घटनाओं के बारे में। क्या ये घटनाएं भविष्य में और बढ़ेंगी? इस लेख में जानें।
 

बादल फटने की घटनाओं का बढ़ता खतरा

भारत के हिमालयी क्षेत्रों में बादल फटने (Cloudburst) की घटनाएं पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ी हैं। ये घटनाएं अचानक भारी बारिश का कारण बनती हैं, जिससे बाढ़, भूस्खलन और जन-धन की हानि होती है। यह जानना आवश्यक है कि ये आपदाएं क्यों बढ़ रही हैं और इसके पीछे कौन से कारण हैं।


बादल फटना क्या है?

भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, जब किसी क्षेत्र में एक घंटे में 100 मिलीमीटर से अधिक वर्षा होती है और यह वर्षा 20-30 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में होती है, तो इसे बादल फटना कहा जाता है। कुछ वैज्ञानिक इसे 'मिनी क्लाउडबर्स्ट' भी मानते हैं, जब दो घंटे में 50-100 मिलीमीटर वर्षा होती है। यह तब होता है जब नमी से भरी हवाएं पहाड़ों से टकराकर ऊपर उठती हैं और वहां कम्युलोनिम्बस बादल बनते हैं।


बादल फटने के कारण

भौगोलिक कारण: हिमालय की ऊंची पहाड़ियां 'ओरोग्राफिक लिफ्टिंग' को बढ़ावा देती हैं, जिससे वर्षा की तीव्रता बढ़ती है। वनों की कटाई और अव्यवस्थित निर्माण भी जोखिम को बढ़ाते हैं।


जलवायु परिवर्तन: वैश्विक तापमान में वृद्धि से समुद्र का तापमान बढ़ रहा है, जिससे हवा में नमी की मात्रा बढ़ रही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि तापमान में 1°C की वृद्धि पर हवा 7% अधिक नमी धारण कर सकती है।


मानवीय कारण: वनों की कटाई, नदियों पर बांध और खराब जल निकासी व्यवस्था से मिट्टी पानी सोखने में असमर्थ हो जाती है, जिससे बाढ़ की स्थिति बनती है।


मॉनसून और पश्चिमी विक्षोभ: बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से आने वाली नमी जब हिमालय से टकराती है, तो भारी वर्षा होती है। पश्चिमी विक्षोभ भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


पहचान में कठिनाई: ये घटनाएं अचानक और सीमित क्षेत्र में होती हैं, जिससे मौसम विभाग इन्हें सटीक रूप से पूर्वानुमानित नहीं कर पाता।


बादल फटने के प्रभाव

1. बाढ़ और भूस्खलन: नदियों का उफान और पहाड़ी ढलानों का धंसना।


2. मानव क्षति: घर, सड़कें, फसलें नष्ट; सैकड़ों मौतें।


3. संचार व्यवस्था बाधित: सड़कें टूटने से राहत कार्य में देरी।


4. पर्यावरणीय नुकसान: मिट्टी का कटाव, नदियों में गाद और प्रदूषण।


5. आर्थिक प्रभाव: पर्यटन और कृषि दोनों पर भारी असर।


भारत में प्रमुख बादल फटने की घटनाएं

1908, हैदराबाद (तेलंगाना): 15,000 मौतें, 80,000 घर तबाह।


1970, अलकनंदा घाटी (उत्तराखंड): सैकड़ों मौतें, गांव नष्ट।


2005, मुंबई (महाराष्ट्र): 950 मिमी वर्षा, 1000 से अधिक मौतें।


2010, लेह (लद्दाख): 179 मौतें, हवाई अड्डा क्षतिग्रस्त।


2013, केदारनाथ (उत्तराखंड): 6000 से 10,000 मौतें, 1 लाख लोग फंसे।


2021, किश्तवाड़ (जम्मू-कश्मीर): 26 मौतें।


2022, पहलगाम (जम्मू-कश्मीर): अमरनाथ यात्रा में 15 श्रद्धालु मरे।


2025, उत्तरकाशी (उत्तराखंड): 4 मौतें, 50 लोग लापता।


2025, किश्तवाड़ (जम्मू-कश्मीर): 45 मौतें, मचैल माता यात्रा प्रभावित।


बादल फटने की बढ़ती घटनाएं: चिंता का विषय

1. हिमालय की संवेदनशीलता: यहां के ढलान और ग्लेशियर बारिश को और तीव्र बनाते हैं।


2. जलवायु परिवर्तन का असर: 1950 के बाद से कुछ क्षेत्रों में वर्षा 20-50% अधिक दर्ज की गई।


3. मानवीय लापरवाही: अंधाधुंध पर्यटन, अवैज्ञानिक निर्माण और खराब जल निकासी।


4. पूर्वानुमान की चुनौती: केवल भारी बारिश की चेतावनी दी जा सकती है, सटीक स्थान और समय नहीं।


सबसे ज्यादा संवेदनशील क्षेत्र

जम्मू-कश्मीर: किश्तवाड़, पहलगाम, अमरनाथ।


हिमाचल प्रदेश: कुल्लू, मनाली, शिमला, चंबा।


उत्तराखंड: केदारनाथ, चमोली, रुद्रप्रयाग, जोशीमठ।


लद्दाख: लेह।


पूर्वोत्तर भारत: तवांग (अरुणाचल) और नॉर्थ सिक्किम।