मालेगांव बम धमाके में नया मोड़: सरकारी गवाह का बड़ा खुलासा
मालेगांव बम धमाके का नया खुलासा
मालेगांव बम धमाके के मामले में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया है। एक सरकारी गवाह ने यह आरोप लगाया है कि उसे योगी आदित्यनाथ और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जैसे प्रमुख नेताओं का नाम लेने के लिए दबाव डाला गया था। गवाह का कहना है कि उसे कई दिनों तक हिरासत में रखा गया और प्रताड़ित किया गया ताकि वह भगवा नेताओं को इस मामले में शामिल कर सके।
गवाह की गवाही से खुलते हैं नए तथ्य
इससे पहले भी मालेगांव ब्लास्ट केस पर कई सवाल उठते रहे हैं। लेकिन अब गवाह की गवाही से यह स्पष्ट हो गया है कि कुछ व्यक्तियों को जानबूझकर फंसाने का प्रयास किया जा रहा था। अदालत ने भी आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी करते हुए जांच एजेंसियों की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
भगवा आतंकवाद का नैरेटिव
मालेगांव धमाके के समय देशभर में भगवा आतंकवाद का मुद्दा चर्चा में था। लेकिन जैसे-जैसे मामला अदालत में आगे बढ़ा, सच्चाई धीरे-धीरे सामने आने लगी। मुंबई की विशेष अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि अभियोजन पक्ष के पास आरोपों को साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं थे। इससे कांग्रेस और तत्कालीन सरकार की मंशा पर भी सवाल उठे।
गवाह ने बताया दबाव बनाने का तरीका
सरकारी गवाह मिलिंद जोशी ने बताया कि उनसे कहा गया था कि वे योगी आदित्यनाथ और मोहन भागवत का नाम केस में लें। इसके लिए उन्हें हिरासत में रखा गया और लगातार दबाव बनाया गया। जांच अधिकारियों ने उन्हें असीमानंद का नाम लेने के लिए भी मजबूर किया। यह सब एक पूर्व निर्धारित स्क्रिप्ट की तरह प्रतीत हो रहा था, जिसका उद्देश्य केवल हिंदुत्व नेताओं को बदनाम करना था।
कोर्ट का निर्णय और मालेगांव धमाका
29 सितंबर 2008 को मालेगांव के भीकू चौक पर हुए धमाके में 6 लोगों की जान गई थी। जांच के दौरान एक बाइक बरामद हुई, जिसकी नंबर प्लेट में छेड़छाड़ की गई थी। बाद में यह बाइक प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर रजिस्टर्ड निकली। इस मामले में प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल पुरोहित और अन्य को आरोपी बनाया गया। लेकिन अदालत ने कहा कि केवल कहानियों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, पुख्ता सबूत की आवश्यकता है, जो पेश नहीं किए गए।