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मोहन भागवत का एकता का संदेश: आध्यात्मिक विरासत को अपनाने की अपील

RSS प्रमुख मोहन भागवत ने सतना में एक समारोह में भारतीयों से एकता का आह्वान किया और आध्यात्मिक विरासत को अपनाने की अपील की। उन्होंने अंग्रेजों द्वारा आध्यात्मिक चेतना छीनने और सिंधी समुदाय की स्थिति पर भी विचार किया। भागवत ने कहा कि हमें अपने हक़ की चीज़ें वापस लेनी चाहिए। जानें उनके विचार और समाज में स्वयंसेवकों की भूमिका के बारे में।
 

RSS प्रमुख मोहन भागवत का संबोधन

RSS Chief Mohan Bhagwat: सतना में सिंधी कैंप गुरुद्वारे के उद्घाटन समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने भाग लिया। उन्होंने उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए भारतीयों के बीच एकता की आवश्यकता पर जोर दिया और भारत की आध्यात्मिक धरोहर को अपनाने की अपील की। भागवत ने कहा कि आज हम विभिन्न पहचान में बंटे हुए हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि चाहे हम किसी भी धर्म या भाषा से जुड़े हों, हम सभी एक हैं, हम हिंदू हैं।


मोहन भागवत का आध्यात्मिक चेतना पर विचार

भागवत ने कहा कि अंग्रेजों ने हमारी आध्यात्मिक चेतना को छीन लिया और हमें भौतिकवादी चीज़ें दीं। इसके परिणामस्वरूप, हम एक-दूसरे से अलग होते गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग खुद को हिंदू नहीं मानते, वे विदेश चले जाते हैं, लेकिन दुनिया उन्हें हिंदू ही समझती है। यह उनके लिए आश्चर्य की बात है, क्योंकि वे अपनी पहचान को छिपाने की कोशिश करते हैं, लेकिन सच्चाई यही है कि वे हिंदू हैं।


सिंधी समुदाय की स्थिति पर विचार

सिंधी समुदाय के बारे में बात करते हुए भागवत ने कहा कि कई सिंधी लोग पाकिस्तान नहीं गए, जो अविभाजित भारत का हिस्सा था। नई पीढ़ी को इस पर विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह स्थान हमारा दूसरा घर है, जहाँ हमारा सामान और स्थान दूसरों ने ले लिया था, लेकिन एक दिन हम उन्हें वापस ले लेंगे क्योंकि वे हमारे हक़ के हैं।


इससे पहले, नागपुर के ऐतिहासिक रेशमबाग मैदान में विजयादशमी के अवसर पर अपने संबोधन में, मोहन भागवत ने सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं और विभिन्न संगठनों में स्वयंसेवकों की सक्रिय भागीदारी पर प्रकाश डाला। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे संघ और स्वयंसेवक समाज में सक्रिय रूप से कार्यरत व्यक्तियों के साथ सहयोग और जुड़ाव बनाए रखते हैं।