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शुक्र प्रदोष व्रत: शिवलिंग पर चढ़ाने से बचें ये वस्तुएं

शुक्र प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा करते समय कुछ वस्तुओं का चढ़ाना वर्जित है। इस लेख में जानें कि शिवलिंग पर क्या नहीं चढ़ाना चाहिए और इस व्रत की विधि क्या है। 5 सितंबर को होने वाले इस व्रत में भक्तों को विशेष सावधानियाँ बरतनी चाहिए। जानें पूजा का सही मुहूर्त और विधि।
 

भगवान शिव की कृपा के लिए सावधानियाँ


भगवान शिव हो सकते हैं रुष्ट
शुक्र प्रदोष व्रत: हिंदू धर्म में मान्यता है कि जब त्रयोदशी तिथि शुक्रवार को आती है, तो इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस दिन विधिपूर्वक पूजा करने से भक्त को शिव-पार्वती के साथ-साथ शुक्र देवता का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के माध्यम से साधक को सुख और समृद्धि का वरदान मिलता है।


इस वर्ष यह उपवास 5 सितंबर को मनाया जाएगा। भक्त इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करते हैं और उपवास रखते हैं। हालांकि, कुछ साधक पूजा में कई गलतियाँ कर देते हैं, जिनसे बचना चाहिए। आइए जानते हैं कि शिवलिंग पर क्या नहीं चढ़ाना चाहिए।


तुलसी के पत्ते: भगवान शिव की पूजा में तुलसी के पत्तों का उपयोग वर्जित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, तुलसी का विवाह जालंधर नामक राक्षस से हुआ था, जिसे भगवान शिव ने समाप्त किया था। इसलिए, शिव की पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं करना चाहिए।


हल्दी: हल्दी को स्त्री सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है और यह माता पार्वती से जुड़ी है। इसलिए, भगवान शिव की पूजा में हल्दी का उपयोग नहीं किया जाता।


सिंदूर: सिंदूर को सौभाग्य और स्त्री शृंगार का प्रतीक माना जाता है। महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए सिंदूर लगाती हैं, जबकि भगवान शिव को संहारक माना जाता है। इसलिए, शिवलिंग पर सिंदूर नहीं चढ़ाना चाहिए।


शंख से जल: भगवान शिव ने शंखचूड़ नामक राक्षस का वध किया था, जो शंख का प्रतीक था। इसलिए, शिवलिंग पर शंख से जल चढ़ाना वर्जित है।


केतकी के फूल: भगवान शिव ने केतकी के फूल को श्राप दिया था। इसलिए, शिवलिंग पर केतकी का फूल नहीं चढ़ाना चाहिए।


टूटे हुए चावल: पूजा में हमेशा साबुत चावल का ही उपयोग करें। टूटे हुए चावल अपूर्णता का प्रतीक होते हैं, इसलिए उन्हें भगवान को नहीं चढ़ाना चाहिए।


प्रदोष व्रत की पूजा विधि

शुक्र प्रदोष व्रत के दिन सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनें। प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की विधिपूर्वक पूजा करें। शिव जी को बिल्व पत्र, धतूरा, भांग, दूध, दही, शहद, घी और जल अर्पित करें। पूजा करते समय ॐ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। पूजा के बाद प्रदोष व्रत कथा पढ़ें और आरती से पूजा पूर्ण करें।


पूजा का मुहूर्त

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 5 सितंबर को सुबह 4 बजकर 8 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 6 सितंबर को सुबह 3 बजकर 12 मिनट पर समाप्त होगी। इस दिन प्रदोष काल में पूजा का मुहूर्त शाम 6:38 से रात 8:55 तक रहेगा।