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श्रीरामसेतु: आस्था और संस्कृति का प्रतीक

श्रीरामसेतु, जो भारतीय संस्कृति और आस्था का प्रतीक है, एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में चर्चा का विषय बना है। भाजपा नेता डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है, जिसमें इस सेतु को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा देने की मांग की गई है। यह पुल केवल एक भौतिक संरचना नहीं, बल्कि त्रेतायुग की याद और लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है। जानें इस ऐतिहासिक स्थल के महत्व और इसके संरक्षण की आवश्यकता के बारे में।
 

श्रीरामसेतु का ऐतिहासिक महत्व

वाल्मीकि रामायण, महाभारत, स्कंदपुराण, और विष्णुपुराण से लेकर कालिदास की रचनाओं तक, हर ग्रंथ में श्रीरामसेतु की कथा का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि विभीषण के अनुरोध पर श्रीराम ने अपने धनुष की नोक से सेतु का एक हिस्सा तोड़ दिया, जिससे इसका नाम ‘धनुष्कोटि’ पड़ा।


सुप्रीम कोर्ट में श्रीरामसेतु का मामला

श्रीरामसेतु एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट में चर्चा का विषय बना है। भाजपा नेता डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर, सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। उनकी मांग है कि रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक फैले इस सेतु को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा दिया जाए और इसके संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। अदालत ने सरकार से पूछा है कि इस आस्था स्थल को राष्ट्रीय महत्व का दर्जा देने में अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की गई?


आस्था और श्रद्धा का प्रतीक

भारतीय जनमानस में रामसेतु केवल एक पुल नहीं, बल्कि त्रेतायुग की याद, श्रीराम के पराक्रम और सीता के प्रति उनके प्रेम का प्रतीक है। लाखों श्रद्धालु इसे तीर्थ मानकर यात्रा करते हैं। ग्रंथों में वर्णित है कि लंका विजय के लिए वानर सेना ने नल-नील के नेतृत्व में पत्थरों पर ‘राम’ लिखकर उन्हें समुद्र पर रखा, और वे पत्थर तैर गए। इस प्रकार समुद्र पर पुल बना और लंका पर चढ़ाई संभव हुई।


वैज्ञानिक दृष्टिकोण

वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह पुल रहस्यमय है। नासा की उपग्रह तस्वीरों ने समुद्र के भीतर फैली पत्थरों की कड़ी को स्पष्ट रूप से दिखाया है। कई विद्वान इसे मानव-निर्मित मानते हैं। पुराणों में कहा गया है कि नल के निर्देशन में यह सेतु केवल पांच दिनों में बना।


आस्था का केंद्र

स्कंदपुराण में कहा गया है कि रामसेतु का दर्शन करने से यज्ञों और तीर्थों का पुण्य फल मिलता है। इसे ‘पापनाशक सेतु’ कहा गया है। पुराणों में यह भी कहा गया है कि जब तक सेतु रहेगा, तब तक भगवान शिव की उपस्थिति इसमें बनी रहेगी।


सरकार की भूमिका

जब देश की बहुसंख्यक आस्था इसे तीर्थ मानती है और वैज्ञानिक संकेत इसके अस्तित्व की पुष्टि करते हैं, तो क्या सरकार को इसमें देर करनी चाहिए? सर्वोच्च न्यायालय का नोटिस इसीलिए महत्वपूर्ण है। यह केवल एक पुल को राष्ट्रीय स्मारक बनाने का प्रश्न नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों की आस्था को मान्यता देने और सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा का प्रश्न है।


श्रीरामसेतु का वर्तमान

श्रीरामसेतु आज भी समुद्र पर खड़ा है—चाहे वह मानव-निर्मित हो या दिव्य संयोग—यह सत्य की विजय और भक्ति के अदम्य विश्वास का प्रतीक है। यदि सरकार इसे राष्ट्रीय महत्व का दर्जा देती है, तो यह न केवल आस्था का सम्मान होगा, बल्कि इतिहास और संस्कृति की उस विरासत की रक्षा भी होगी जिसे कोई विवाद या लहर नहीं डुबो सकती।