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सोलुबोंगु गांव में शिक्षा की कठिनाइयाँ: बच्चों का साहसिक सफर

आंध्र प्रदेश के सोलुबोंगु गांव में बच्चों के लिए स्कूल जाना एक साहसिक कार्य है। यहां के बच्चे रोज़ाना नाव से नहर पार करते हैं और बारिश के मौसम में कठिन जंगलों और पहाड़ियों से गुजरते हैं। गांव में शिक्षा की कमी और बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, जिससे बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जानें इस गांव की शिक्षा की स्थिति और बच्चों की साहसिक यात्रा के बारे में।
 

सोलुबोंगु गांव में शिक्षा की चुनौतियाँ

सोलुबोंगु गांव में शिक्षा: आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू जिले के सोलुबोंगु गांव के बच्चों के लिए स्कूल जाना एक साहसिक कार्य से कम नहीं है। यहां शिक्षा प्राप्त करना इतना कठिन है कि छोटे बच्चे, जो केवल छह साल के हैं, रोज़ाना नाव से नहर पार करते हैं और घने जंगलों तथा खतरनाक पहाड़ियों के रास्ते स्कूल पहुंचते हैं।


स्कूल की दूरी और मौसम की चुनौतियाँ

यह गांव देवरापल्ली मंडल में स्थित है और अनकापल्ली जिले के टमारब्बा गांव के स्कूल पर निर्भर है, जो लगभग 2.5 किलोमीटर दूर है। सामान्य दिनों में बच्चे नाव से रायवाड़ा नहर पार कर स्कूल जाते हैं, लेकिन बारिश के मौसम में नहर के उफान के कारण उन्हें लगभग 4 किलोमीटर का कठिन जंगल और पहाड़ी रास्ता तय करना पड़ता है।


बारिश में यात्रा का खतरा

बारिश में जोखिम और बढ़ जाता है

स्कूल के प्रधानाध्यापक ने बताया, 'सोलुबोंगु में कोई स्कूल नहीं है। यहां और आसपास के गांवों जैसे कडरेवु और कोट्टेमगुड़ेम से 12 से ज्यादा बच्चे रोज नाव से स्कूल आते हैं। बारिश में यह सफर बेहद खतरनाक हो जाता है, ऐसे में हम बच्चों से घर में ही रहने को कहते हैं।'


जनजातीय गांवों की मांग

जनजातीय गांवों की लंबे समय से मांग अधूरी

सोलुबोंगु में कुल 16 परिवार निवास करते हैं, जो मुख्यतः नूक्का डोरा और कोंडा डोरा जनजातियों से संबंधित हैं। वे वर्षों से अपने गांव में एक प्राथमिक विद्यालय की मांग कर रहे हैं। यह मांग केवल सोलुबोंगु की नहीं, बल्कि गोप्पुलपालेम, कल्याणगुम्मी, मदनगरुवु, कोट्टेमगुड़ेम और कडरेवु जैसे पांच अन्य गांवों की भी है, जहां के बच्चे भी 5 किलोमीटर तक पैदल चलकर स्कूल पहुंचते हैं।


बुनियादी सुविधाओं की कमी

सुविधाएं हैं, लेकिन संपर्क नहीं

गांव में बिजली और पीने के पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हैं, लेकिन स्कूल, राशन और सड़क जैसी आवश्यक व्यवस्थाओं का अभाव बना हुआ है। राशन के लिए ग्रामीणों को 40 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है। मनरेगा के तहत स्वीकृत सड़क परियोजना अभी तक कागज़ों में ही अटकी है क्योंकि वन विभाग की मंजूरी नहीं मिली।