हिमाचल प्रदेश में जलवायु संकट: सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान
जलवायु त्रासदी का सामना कर रहा हिमाचल प्रदेश
हाल ही में हिमाचल प्रदेश में जलवायु संकट की गंभीर स्थिति उत्पन्न हुई है। यहां बादल फटने और पहाड़ों के खिसकने की घटनाएं बढ़ रही हैं। हर साल नए रिकॉर्ड बनते जा रहे हैं, और मानव जनित कारणों से यह संकट और भी बढ़ता जा रहा है। इस समस्या के समाधान के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास करने की आवश्यकता है, लेकिन राज्य और केंद्र दोनों ही इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार नहीं कर रहे हैं। इस स्थिति को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने पारिस्थितिक असंतुलन की जांच के लिए न्यायमित्र नियुक्त किया है।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता शामिल हैं, ने हिमाचल प्रदेश में जलवायु और पारिस्थितिकीय परिस्थितियों पर सुनवाई की।
राज्य की स्थिति गंभीर
अगर हालात नहीं बदले तो राज्य का अस्तित्व संकट में
28 जुलाई को जस्टिस जे बी पादरीवाला और आर माधवन की बेंच ने चेतावनी दी थी कि यदि स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो राज्य का अस्तित्व संकट में पड़ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का अगला चरण
सुनवाई चार हफ्तों बाद होगी
सोमवार को, हिमाचल प्रदेश के महाधिवक्ता और अतिरिक्त महाधिवक्ता ने बेंच को 23 अगस्त को राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के बारे में जानकारी दी। शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई चार हफ्तों के लिए स्थगित कर दी है।
पर्यावरणीय संकट के कारण
राज्य में पर्यावरणीय संकट को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई में कहा था कि जलवायु परिवर्तन का राज्य पर स्पष्ट और चिंताजनक प्रभाव पड़ा है।
जल विद्युत परियोजनाओं का विनाशकारी प्रभाव
पीठ ने बताया कि विभिन्न रिपोर्टों और विशेषज्ञों के अनुसार, जल विद्युत परियोजनाएं, सड़कें, वनों की कटाई और बहुमंजिला इमारतें राज्य में विनाश का मुख्य कारण हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हिमाचल प्रदेश हिमालय की गोद में बसा है, और विकास परियोजनाओं को शुरू करने से पहले भूवैज्ञानिकों, पर्यावरण विशेषज्ञों और स्थानीय निवासियों की राय लेना आवश्यक है।