हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी: प्रीमियम बढ़ने से बचने के आसान तरीके
हेल्थ इंश्योरेंस का महत्व
हेल्थ इंश्योरेंस लेना स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए एक बुद्धिमानी भरा निर्णय है। भारत में हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी एक अधिकार के रूप में देखी जाती है। इसका अर्थ है कि यदि आपका मौजूदा प्लान आपकी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर रहा है, प्रीमियम बढ़ गया है, या सेवा संतोषजनक नहीं है, तो आप अपनी पॉलिसी को बेहतर इंश्योरेंस कंपनी में बिना किसी लाभ को खोए स्थानांतरित कर सकते हैं। प्रीमियम में वृद्धि केवल पोर्टेबिलिटी के कारण नहीं होती, बल्कि यह आपकी उम्र, स्वास्थ्य प्रोफाइल और कवरेज पर निर्भर करती है।
हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम में बदलाव के कारण
हेल्थ इंश्योरेंस की कीमत क्यों बदलती है?
हेल्थ इंश्योरेंस का प्रीमियम कई कारणों से बदलता है। यह बदलाव हर कंपनी या योजना में स्वाभाविक होता है। केवल पॉलिसी पोर्ट करने से प्रीमियम अपने-आप नहीं बढ़ता। प्रीमियम उम्र, चिकित्सा महंगाई, क्लेम इतिहास और चुने गए कवरेज पर निर्भर करता है।
1. उम्र के साथ प्रीमियम में वृद्धि
जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती है, स्वास्थ्य जोखिम भी बढ़ता है। इसलिए कंपनियां प्रीमियम को उम्र के अनुसार फिर से निर्धारित करती हैं।
2. चिकित्सा महंगाई
भारत में उपचार, सर्जरी, दवाइयों और अस्पतालों की लागत हर साल बढ़ती है। जब इलाज महंगा होता है, तो इंश्योरेंस कंपनियां प्रीमियम को उसी अनुसार समायोजित करती हैं।
3. पॉलिसी में सुधार
यदि आप अपने प्लान में नए लाभ या सुविधाएं जोड़ते हैं, जैसे मातृत्व कवर या गंभीर बीमारी कवर, तो प्रीमियम स्वाभाविक रूप से बढ़ जाता है।
4. क्लेम इतिहास
यदि आपने पिछले कुछ वर्षों में कई बार दावे किए हैं, तो इंश्योरेंस कंपनी आपको उच्च जोखिम वाला ग्राहक मान सकती है, जिससे प्रीमियम बढ़ सकता है।
5. जीवनशैली
यदि कोई व्यक्ति धूम्रपान करता है, अत्यधिक शराब का सेवन करता है या व्यायाम नहीं करता, तो उसका स्वास्थ्य जोखिम बढ़ जाता है, जिससे प्रीमियम भी बढ़ सकता है।
6. पॉलिसी का प्रकार और लाभ
कैशलेस अस्पताल सुविधाएं, कमरे के किराए से जुड़े नियम, स्वास्थ्य देखभाल लाभ और भर्ती से पहले और बाद की चिकित्सा सुविधाएं, इन सभी का प्रीमियम पर प्रभाव पड़ता है।
हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी के मिथक
हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी और जोखिम मूल्यांकन से जुड़े भ्रम
कई लोग मानते हैं कि जब वे अपनी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी को एक कंपनी से दूसरी कंपनी में पोर्ट करते हैं, तो उनकी जोखिम मूल्यांकन फिर से शुरू होगी और प्रीमियम बहुत बढ़ जाएगा। लेकिन यह आधा सच है। पोर्टेबिलिटी का मतलब है कि आप अपनी पुरानी पॉलिसी के लाभ और वेटिंग पीरियड्स नई कंपनी में भी ले जा सकते हैं।
नई कंपनी आपका मेडिकल इतिहास जरूर देखती है, लेकिन पहले से मिले लाभ (जैसे वेटिंग पीरियड पूरा हो चुका है) छीन नहीं सकती। कई लोग सोचते हैं कि पोर्ट करने से हर बार मेडिकल चेकअप जरूरी है, लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता।
यदि आपकी स्वास्थ्य स्थिति स्थिर है और कोई बड़ा बदलाव नहीं है, तो पोर्टेबिलिटी के दौरान प्रीमियम में ज्यादा अंतर नहीं आता। यह आपको बेहतर सेवा और कम प्रीमियम चुनने की स्वतंत्रता देती है।
प्रीमियम न बढ़ाने के उपाय
हेल्थ इंश्योरेंस कैसे पोर्ट करें ताकि प्रीमियम न बढ़े?
पहले सम इंश्योर्ड ठीक करें: जरूरत हो तो उसी कंपनी में सम इंश्योर्ड बढ़ाएं, फिर पोर्ट करें। इससे नया वेटिंग पीरियड नहीं लगेगा।
सिर्फ ज़रूरी फीचर्स रखें: अनावश्यक ऐड-ऑन हटाएं, इन्हीं से प्रीमियम बढ़ता है।
टॉप-अप प्लान जोड़ें: महंगी बेस पॉलिसी की बजाय बेस और टॉप-अप का कॉम्बिनेशन लें। बड़े कवरेज पर कम खर्च होगा।
लॉन्ग-टर्म पॉलिसी चुनें: 2-3 साल की पॉलिसी लेने पर हर साल का प्रीमियम कम पड़ता है।
NCB ट्रांसफर करें: नो-क्लेम बोनस नए प्लान में ले जाना न भूलें, प्रीमियम घटाने में मदद करता है।
समय पर पोर्ट करें: पॉलिसी खत्म होने से 45-60 दिन पहले रिक्वेस्ट डालें।
कंपैरिजन करें: 3-4 कंपनियों के प्रीमियम और कवरेज तुलना करें, तभी पोर्ट करें।
हेल्थ इंश्योरेंस पोर्ट करने से पहले चेकलिस्ट
हेल्थ इंश्योरेंस पोर्ट करने से पहले चेकलिस्ट
अपनी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी पोर्टेबिलिटी कराने के लिए आम तौर पर आपको ये डॉक्यूमेंट देने पड़ सकते हैं:
1. मौजूदा हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी का विवरण/कॉपी
2. नई इंश्योरेंस कंपनी के लिए प्रपोज़ल फॉर्म
3. केवाईसी डॉक्युमेंट, जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड आदि
4. पिछली पॉलिसी के डॉक्युमेंट और रिन्यूअल नोटिस
5. जरूरत होने पर मेडिकल रिकॉर्ड और टेस्ट रिपोर्ट्स