करवा चौथ: व्रत की विधि और महत्व
करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे विवाहित महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए करती हैं। यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है, जो इस वर्ष गुरुवार, 9 अक्टूबर 2025 को रात 10:54 बजे से शुरू होगा और शाम 7:38 बजे तक चलेगा। चंद्रमा का उदय रात 8:13 बजे होगा। इस दिन महिलाएं भगवान शिव, देवी पार्वती, कार्तिकेय और भगवान गणेश की पूजा करती हैं और पूजा के बाद चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करती हैं।
व्रत तोड़ने की प्रक्रिया
करवा चौथ का व्रत रखने वाली महिलाएं चंद्रमा की पूजा के बाद अपने पति के हाथ से पानी पीकर अपना व्रत समाप्त करती हैं, इसके बाद वे प्रसाद ग्रहण करती हैं। हालांकि, कई महिलाएं इस दिन के लिए अपनी तैयारी को लेकर अनजान होती हैं। सबसे पहले, उन्हें सुबह उठकर स्नान करना चाहिए और अपने दैनिक कार्यों को पूरा करना चाहिए।
व्रत के दौरान पालन करने योग्य बातें
सुबह की तैयारी:
सूर्योदय से पहले सास द्वारा दी गई सरगी का सेवन करें, जो व्रत की शुभ शुरुआत मानी जाती है।
स्नान के बाद लाल या पीले वस्त्र पहनें, जो शुभता का प्रतीक हैं।
भगवान शिव, पार्वती और चंद्र देव के समक्ष व्रत का संकल्प लें।
पूजा स्थल को स्वच्छ और सुंदर रखें, क्योंकि यह लक्ष्मी का प्रतीक है।
एक बर्तन में जल, चावल, रोली, चूड़ियाँ और मिठाई रखें।
सोलह श्रृंगार करें, जो वैवाहिक सौभाग्य का प्रतीक है।
देवी पार्वती की मूर्ति की पूजा करें।
कथा सुनना या पढ़ना न भूलें, क्योंकि इससे व्रत पूर्ण होता है।
दीपक में घी या सरसों का तेल जलाएँ, जो सौभाग्य का प्रतीक है।
व्रत के दौरान शुभ मंत्रों का जाप करें, जैसे "ॐ नमः शिवाय" या "ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीये नमः"।
करवा चौथ की कथा
कथा का सार:
एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी, जो अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे। साहूकार की पत्नी ने अपनी बहुओं और बेटी के साथ चौथ का व्रत रखा। चाँद देखने के बाद ही व्रत तोड़ा जाता है। उस रात, जब साहूकार के बेटे भोजन करने लगे, तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन मांगा। बहन ने बताया कि उसका व्रत है और वह चाँद को अर्घ्य देकर ही व्रत तोड़ सकती है। सबसे छोटे भाई ने अपनी बहन को धोखा देने के लिए दूर एक पेड़ पर दीपक जलाकर छलनी के पीछे रखा। बहन ने सोचा कि चाँद निकल आया है और व्रत तोड़ने का निर्णय लिया। लेकिन जैसे ही उसने पहला निवाला मुँह में डाला, उसे छींक आ गई और उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला।
व्रत का पुनः पालन
वह बहुत दुखी हुई और एक वर्ष तक अपने पति के शव के पास बैठी रही। उसने हर वर्ष चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत रखा। अगले वर्ष, जब कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आई, तो उसने विधिपूर्वक व्रत किया। शाम को उसने सुहागिनों से विनती की कि उसे उसके पति की सुई दे दें। करवा माता और गणेश के आशीर्वाद से उसके पति पुनः जीवित हो गए। इस प्रकार, करवा चौथ का व्रत सभी के लिए सौभाग्य लाता है।