नीम करोली बाबा: भक्तों के दिलों में बसी चमत्कारी कहानियाँ
नीम करोली बाबा की अद्भुत शक्तियाँ
नीम करोली बाबा की कहानियाँ आज भी उनके अनुयायियों के बीच जीवित हैं। उन्हें एक चमत्कारी संत माना जाता है, जो अपने भक्तों की समस्याओं को संकट मोचन हनुमान जी की तरह दूर करने की अद्भुत क्षमता रखते थे। बाबा को हनुमान जी का अनन्य भक्त माना जाता था और कहा जाता है कि उन्होंने स्वयं हनुमान जी के दर्शन किए थे।
भक्तों की अटूट आस्था
बाबा नीम करोली के ब्रह्मलीन होने के कई दशकों बाद भी उनके भक्तों में गहरी श्रद्धा और विश्वास बना हुआ है। उनके चमत्कार और कहानियाँ लोगों के दिलों में बाबा की एक विशेष पहचान बनाती हैं। बाबा के दरबार में सभी का स्वागत था, लेकिन वहां पहुंचना केवल भाग्यशाली लोगों के लिए ही संभव था। उनका मानना था कि भक्त और भगवान के बीच कोई दीवार नहीं होनी चाहिए। भक्तों की आस्था और विश्वास ही उस पवित्र संबंध का आधार है, जिससे वे बाबा के पास पहुँचते थे।
प्रधानमंत्री से मिलने से इनकार की अद्भुत घटना
नीम करोली बाबा के जीवन की एक प्रसिद्ध घटना तब हुई जब उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से मिलने से मना कर दिया। यह घटना बाबा के कानपुर प्रवास के दौरान हुई थी। कहा जाता है कि बाबा सरसैया घाट पर लगभग 200 भक्तों के साथ थे, तभी कानपुर के डीएसपी और कुछ पुलिसकर्मी वहां पहुंचे। उन्होंने बाबा से निवेदन किया कि प्रधानमंत्री और गुलजारीलाल नंदा उनसे मिलना चाहते हैं।
हालांकि, बाबा ने इस मुलाकात से साफ मना कर दिया। इसके बाद भी पुलिसकर्मियों ने प्रधानमंत्री और गुलजारीलाल नंदा को बाबा के पास ले जाने का प्रयास किया। जैसे ही वे बाबा के पास पहुंचे, बाबा अचानक एक प्रकाश में विलीन हो गए। सभी लोग हैरान रह गए और उन्हें देखने की कोशिश की, लेकिन बाबा अदृश्य हो चुके थे। थोड़ी देर बाद, बाबा फिर से अपने भक्तों के बीच लौट आए।
बाबा का संदेश: भक्ति में भेदभाव नहीं
इस चमत्कारी घटना के बाद एक भक्त ने बाबा से पूछा कि आपने प्रधानमंत्री से मिलने से क्यों मना किया? बाबा ने उत्तर दिया कि वे किसी भी भक्त के प्रति भेदभाव नहीं करते। यदि प्रधानमंत्री आम भक्त की तरह सीधे उनके पास आते, तो वे उनसे जरूर मिलते। लेकिन उन्होंने अपने आप को विशेष दर्जे में रखा और उनके और भक्तों के बीच पुलिस की दीवार खड़ी कर दी। इसलिए बाबा ने उनसे मुलाकात नहीं की।
यह घटना बाबा नीम करोली का एक महत्वपूर्ण संदेश भी है, जो वे भक्तों को देना चाहते थे। उनका मानना था कि भगवान और भक्त के बीच कोई भी तीसरा, चाहे वह पद हो या प्रतिष्ठा, नहीं आना चाहिए। भक्त जो भी सच्चे मन से भगवान से मांगता है, भगवान उसकी हर इच्छा पूरी करते हैं। भक्त और भगवान के बीच सीधा और निष्काम रिश्ता होना चाहिए, तभी भक्ति सफल होती है।