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अहंकार: आत्मविकास में बाधा और विनम्रता का महत्व

अहंकार एक ऐसी मानसिकता है जो व्यक्ति को उसके विकास से रोकती है। यह आत्मविश्वास के भ्रम से शुरू होती है और धीरे-धीरे गलत निर्णयों की श्रृंखला में बदल जाती है। धार्मिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से, अहंकार का अंत विनाश ही होता है। इस लेख में, हम जानेंगे कि कैसे विनम्रता और आत्मचिंतन के माध्यम से अहंकार को पराजित किया जा सकता है और व्यक्ति अपने आत्मविकास की ओर अग्रसर हो सकता है।
 

अहंकार की जटिलता


मनुष्य की स्वभाविक प्रवृत्तियाँ जटिल होती हैं। जैसे-जैसे वह ज्ञान अर्जित करता है, वह अपने आपको दूसरों से श्रेष्ठ मानने लगता है। यहीं से अहंकार की शुरुआत होती है, जो धीरे-धीरे उसके विचारों, निर्णयों और व्यवहार को प्रभावित करने लगती है। इतिहास, धर्म, दर्शन और मनोविज्ञान सभी इस बात की पुष्टि करते हैं कि जब अहंकार विवेक पर हावी हो जाता है, तो व्यक्ति अपने विनाश की ओर बढ़ता है।


अहंकार का प्रारंभ: आत्मविश्वास या भ्रम?

<a href=https://youtube.com/embed/YBUXd5NCp9g?autoplay=1&mute=1><img src=https://img.youtube.com/vi/YBUXd5NCp9g/hqdefault.jpg alt=""><span><div class="youtube_play"></div></span></a>" style="border: 0px; overflow: hidden"" title="अहंकार का त्याग कैसे करें | ओशो के विचार | Osho Hindi Speech | अहंकार क्या है और इसे कैसे पराजित करे" width="695">


अहंकार की शुरुआत अक्सर आत्मविश्वास के रूप में होती है। व्यक्ति अपने अनुभवों और ज्ञान के आधार पर खुद को दूसरों से बेहतर समझने लगता है। यह भावना धीरे-धीरे उसे अलग-थलग कर देती है, जिससे वह दूसरों की सलाह और आलोचना को नजरअंदाज करने लगता है।


गलत निर्णयों की श्रृंखला

अहंकारी व्यक्ति तर्क और तथ्यों की बजाय अपनी भावनाओं को प्राथमिकता देता है। वह निर्णय लेते समय सामाजिक दृष्टिकोण और दीर्घकालिक परिणामों को अनदेखा कर देता है। ऐसे निर्णय अक्सर आत्मघाती साबित होते हैं।


धार्मिक दृष्टिकोण

हिंदू धर्म में अहंकार को "अहं भाव" कहा गया है, जो कि पांच प्रमुख दोषों में से एक है। रावण और दुर्योधन जैसे पात्र इसके उदाहरण हैं। रावण की शक्ति और विद्या के बावजूद, उसका अहंकार उसे विनाश की ओर ले गया।


श्रीमद्भगवद् गीता का संदेश

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा:


"अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः, मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः।"


(अर्थ: जो अहंकार और घमंड में डूबे हैं, वे दूसरों को अपमान की दृष्टि से देखते हैं।)


मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण

मनोविज्ञान के अनुसार, अहंकार व्यक्ति की आत्म-छवि को बढ़ा देता है। जब कोई उसे चुनौती देता है, तो वह इसे व्यक्तिगत अपमान मानता है। यह प्रवृत्ति उसे सच्चाई स्वीकार करने से रोकती है।


आधुनिक उदाहरण

राजनीति और कॉर्पोरेट जगत में कई उदाहरण हैं जहाँ अहंकार ने सफलता को गिरावट में बदल दिया। जब नेता अपने सलाहकारों की अनदेखी करते हैं या व्यवसायी बाजार की वास्तविकताओं को नजरअंदाज करते हैं, तो परिणाम नकारात्मक होते हैं।


अहंकार से बचने के उपाय

अहंकार से बचने का सबसे प्रभावी तरीका विनम्रता और आत्मचिंतन है। जो व्यक्ति अपनी गलतियों से सीखता है, वही आगे बढ़ता है। महापुरुषों का जीवन इस सत्य की पुष्टि करता है।


अहंकार का दर्पण

अहंकार एक ऐसा दर्पण है जो व्यक्ति को उसकी वास्तविकता से दूर कर देता है। जब व्यक्ति अपने अहम को सर्वोपरि मानता है, तो वह न केवल दूसरों से कटता है, बल्कि अपने आत्मविकास के मार्ग को भी अवरुद्ध कर देता है।