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अहंकार का त्याग: जीवन में सुख और संतोष की खोज

अहंकार एक अदृश्य दुश्मन है जो व्यक्ति को आंतरिक रूप से कमजोर कर देता है। यह रिश्तों में दरारें, कार्यस्थल पर असंतोष और समाज में सम्मान की कमी का कारण बनता है। इस लेख में हम जानेंगे कि अहंकार का त्याग कैसे किया जाए और इसके प्रभावों से कैसे बचा जाए। साथ ही, हम यह भी देखेंगे कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अहंकार को कैसे समझा जा सकता है।
 

अहंकार का प्रभाव


मनुष्य का जीवन सुख, शांति और संतोष की खोज में व्यतीत होता है। लेकिन अक्सर यह खोज अहंकार के कारण अधूरी रह जाती है। अहंकार एक अदृश्य दुश्मन है, जो व्यक्ति को आंतरिक रूप से कमजोर कर देता है। जब 'मैं' का भाव बढ़ता है, तो रिश्तों में दरारें आ जाती हैं, मित्रता में विश्वास कम होता है, और समाज में सम्मान भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है। विद्वानों और संतों ने हमेशा कहा है कि "अहंकार का त्याग करो, तभी जीवन में आनंद का मार्ग खुलता है।"


रिश्तों पर असर

<a style="border: 0px; overflow: hidden" href=https://youtube.com/embed/YBUXd5NCp9g?autoplay=1&mute=1><img src=https://img.youtube.com/vi/YBUXd5NCp9g/hqdefault.jpg alt=""><span><div class="youtube_play"></div></span></a>" title="अहंकार का त्याग कैसे करें | ओशो के विचार | Osho Hindi Speech | अहंकार क्या है और इसे कैसे पराजित करे" width="1250">


अहंकार व्यक्ति को अपने प्रियजनों से दूर कर देता है। जब कोई व्यक्ति अपनी उपलब्धियों का बखान करता है या खुद को दूसरों से बेहतर समझता है, तो रिश्तों में मिठास कम होने लगती है। परिवार में विवाद, समाज में अलगाव और मित्रता में दरार का मुख्य कारण यही 'मैं' बन जाता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी परिवार में सदस्यों की राय का सम्मान नहीं किया जाता और केवल अपनी बात को थोपने की कोशिश की जाती है, तो वह घर खुशहाल नहीं रह पाता।


कार्यस्थल पर नुकसान

कार्यस्थल पर भी अहंकार सफलता में बाधा डालता है। एक प्रभावी नेता या प्रबंधक के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी टीम की राय सुने और सभी को साथ लेकर चले। लेकिन यदि वही नेता अहंकार में डूबा हो और केवल अपनी सोच को सर्वोच्च मानता हो, तो उसकी टीम में असंतोष फैलना तय है। इसके परिणामस्वरूप कार्य की गुणवत्ता और संगठन का विकास प्रभावित होता है।


आध्यात्मिक दृष्टिकोण

धार्मिक और आध्यात्मिक ग्रंथों में अहंकार को मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन माना गया है। भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाते हुए कहा है कि अहंकार ज्ञान को ढक देता है और व्यक्ति को मोह-माया में फंसा देता है। संत कबीरदास ने भी कहा था, "जहाँ अहंकार, वहाँ प्रेम नहीं टिकता।" इसका अर्थ है कि जब तक 'मैं' का भाव रहेगा, तब तक सच्चे प्रेम और भक्ति का अनुभव संभव नहीं है।


समाज में सम्मान का ह्रास

अहंकारी व्यक्ति को समाज में लंबे समय तक सम्मान नहीं मिल पाता। उसकी उपलब्धियाँ और शक्तियाँ कुछ समय तक लोगों को आकर्षित कर सकती हैं, लेकिन जब लोग उसके व्यवहार में घमंड देखते हैं, तो धीरे-धीरे उससे दूरी बना लेते हैं। इतिहास गवाह है कि कई राजाओं, नेताओं और प्रभावशाली व्यक्तियों ने केवल अपने अहंकार के कारण सब कुछ खो दिया।


अहंकार से मुक्ति का मार्ग

अहंकार को त्यागना आसान नहीं है, लेकिन यह असंभव भी नहीं है। सबसे पहले व्यक्ति को यह स्वीकार करना होगा कि जीवन में जो भी उपलब्धियाँ हैं, वे केवल उसके प्रयासों का परिणाम नहीं, बल्कि परिस्थितियों, समाज और ईश्वर की कृपा का भी फल हैं। इस भावना से स्वाभाविक रूप से विनम्रता आती है। ध्यान, साधना और आत्मचिंतन भी अहंकार को कम करने के प्रभावी साधन हैं। जब इंसान यह समझ लेता है कि उसका अस्तित्व व्यापक सृष्टि का एक छोटा-सा हिस्सा है, तो 'मैं' की भावना अपने आप कम हो जाती है।