ओशो के दृष्टिकोण से प्रेम: एक गहरी समझ
प्रेम का गहरा अनुभव
प्रेम एक ऐसा अनुभव है जिसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन होता है। लेकिन जब इसे ओशो जैसे आध्यात्मिक गुरु के विचारों के संदर्भ में देखा जाता है, तो इसकी गहराई और स्पष्टता बढ़ जाती है। ओशो का मानना है कि प्रेम केवल एक भावना नहीं है, बल्कि यह अस्तित्व की सबसे शुद्ध अवस्था है। यह तब उत्पन्न होता है जब मन शांत होता है, व्यक्ति अपने आप से जुड़ता है, और बिना किसी अपेक्षा या स्वार्थ के दूसरे को स्वीकार करता है।
ओशो के अनुसार, जब किसी को सच्चा प्रेम होता है, तो वह 'होने' की अनुभूति करता है, न कि 'पाने' या 'बनाने' की। यह प्रेम किसी लक्ष्य की ओर नहीं बढ़ता, बल्कि स्वयं एक लक्ष्य बन जाता है। सच्चे प्रेम में व्यक्ति अपनी सीमाओं से परे जाकर किसी के अस्तित्व को प्रेम करता है।
प्रेम की अवस्था में मन का परिवर्तन
प्रेम की अवस्था में मन कैसे बदलता है?
ओशो के अनुसार, जब किसी को सच्चा प्रेम होता है, तो मन में द्वंद्व समाप्त हो जाता है। न ईर्ष्या रह जाती है, न स्वार्थ। व्यक्ति 'स्व' से परे हो जाता है। वह न किसी चीज़ को पकड़ना चाहता है, न खोने का डर रखता है। उसका प्रेम एक ध्यान बन जाता है — जहां न शोर होता है, न मांग। केवल मौन और स्वीकृति होती है। ओशो कहते हैं कि "प्रेम एक फूल की तरह खिलता है, जिसे न तो खोला जा सकता है, न ही किसी दबाव से जल्दी खिलाया जा सकता है। यह तभी होता है जब आप भीतर से तैयार होते हैं।"
प्रेम का अनुभव और परिवर्तन
जब प्रेम होता है, तो क्या होता है अनुभव?
जब किसी को सच्चा प्रेम होता है, तो उसमें परिवर्तन आता है। वह औरों के प्रति दयालु हो जाता है, उसका मन सहज रूप से सेवा और सहयोग की ओर झुकता है। उसकी वाणी में कठोरता की जगह मिठास आ जाती है। वह दूसरे के दुःख में दुखी और सुख में आनंदित होता है — बिना किसी अपेक्षा के। यह परिवर्तन बाहरी नहीं, भीतरी होता है। ओशो इसे “त्रान्सेंडेंस” कहते हैं — अर्थात अपनी सीमाओं को पार करना। वह कहते हैं कि सच्चा प्रेम आपको उड़ना सिखाता है, लेकिन बंधनों के साथ नहीं, बल्कि स्वतंत्रता के साथ। प्रेम अगर बंधन बन जाए, तो वह गुलामी है; लेकिन अगर वह आज़ादी दे, तो वह ध्यान है।
सच्चा प्रेम और उसकी व्यापकता
क्या सच्चा प्रेम केवल किसी व्यक्ति के लिए हो सकता है?
ओशो का दृष्टिकोण सच्चे प्रेम को किसी एक व्यक्ति तक सीमित नहीं रखता। वह कहते हैं कि सच्चा प्रेम किसी भी एक व्यक्ति के प्रति नहीं, बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि के प्रति हो सकता है। जब आप पेड़, पक्षियों, आकाश, चाँद, सूरज — सभी के प्रति वही भाव रखते हैं, जो आपने किसी प्रिय व्यक्ति के लिए महसूस किया, तब वह प्रेम अपनी पूर्णता में होता है। ओशो के शब्दों में – “प्रेम एक दिशा है, मंज़िल नहीं। जब तुम प्रेम करने लगते हो, तो हर चीज़ सुंदर हो जाती है। तुम्हारे चारों ओर संगीत हो जाता है, मौन भी बोलने लगता है और शून्यता भी भर जाती है।”
प्रेम और आत्मज्ञान का संबंध
सच्चा प्रेम और आत्मज्ञान का संबंध
ओशो मानते हैं कि सच्चा प्रेम ही आत्मज्ञान की पहली सीढ़ी है। क्योंकि जब आप प्रेम में होते हैं, तो आप अहंकार से बाहर होते हैं। और जब अहंकार समाप्त होता है, तभी आत्मा की झलक मिलती है। इसीलिए ओशो कहते हैं, “जहां प्रेम है, वहां परमात्मा है। क्योंकि प्रेम ही परमात्मा का पहला स्पंदन है।” वे यह भी स्पष्ट करते हैं कि प्रेम में गिरने की नहीं, प्रेम में उठने की बात होनी चाहिए। अंग्रेज़ी में "Fall in love" कहना गलत है, ओशो इसे "Rise in love" कहते हैं — यानी प्रेम में ऊंचा उठना।