कारगिल युद्ध: भारतीय सेना की वीरता और बोफोर्स तोप की भूमिका
कारगिल युद्ध की महत्ता
भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्धों में कारगिल युद्ध का उल्लेख अनिवार्य है। इस संघर्ष में भारत माता ने अनेक वीर सपूतों को खोया। यह वह युद्ध था जिसमें भारतीय सैनिकों ने कठिन मौसम की चुनौतियों का सामना करते हुए दुश्मन को दुर्गम पहाड़ियों से खदेड़ दिया। यह युद्ध 60 दिनों तक चला और इसका समापन 26 जुलाई 1999 को हुआ। इस दिन को हर साल कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
सैनिकों की साहसिकता
इस युद्ध में भारतीय सेना के जवानों ने अद्वितीय साहस का प्रदर्शन किया, क्योंकि यह युद्ध लगभग 17,000 फीट की ऊँचाई पर और -10 से -20 डिग्री सेल्सियस के तापमान में लड़ा गया। यहाँ तक पहुँचने में सैनिकों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
ऑक्सीजन की कमी और हथियारों की आवश्यकता
ऊँचाई के कारण सैनिकों को ऑक्सीजन की कमी का सामना करना पड़ा। उनके पास गोला-बारूद तो था, लेकिन दुश्मन ऊँचाई पर स्थित था। ऐसे में, सैनिकों को एक ऐसे हथियार की आवश्यकता थी जो दुश्मन पर सटीक निशाना लगा सके।
बोफोर्स तोप की भूमिका
यहीं बोफोर्स तोप ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे ट्रकों और हेलीकॉप्टरों के माध्यम से ऊँचाई तक पहुँचाया गया। बोफोर्स ने दुश्मन पर ऐसा कहर बरपाया कि पाकिस्तानी सेना भागने पर मजबूर हो गई। यह एक शक्तिशाली तोप थी, जिसे स्वीडन से खरीदा गया था।
बोफोर्स की तैनाती
यह 155 MM की तोप थी, जो लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर सटीक निशाना लगा सकती थी। कारगिल में पहली बार बोफोर्स की तैनाती की गई, जिससे दुश्मन की स्थिति और खराब हो गई। उस समय सेना ने बोफोर्स तोपों की 4 रेजिमेंट यानी 72 तोपें तैनात की थीं।
गोला-बारूद की बौछार
बोफोर्स तोप 90 डिग्री पर 35 किलोमीटर की दूरी तक गोलाबारी कर रही थी और हर 12 सेकंड में तीन राउंड फायर कर रही थी। इस 155 मिमी तोप से कुल 69,800 राउंड गोले दागे गए। हर दिन लगभग 5000 तोप के गोले, मोर्टार बम और रॉकेट दागे गए।