गया में ऑनलाइन पिंडदान सेवा पर विवाद: धार्मिक परंपराओं का उल्लंघन?
ऑनलाइन पिंडदान सेवा का विवाद
ऑनलाइन पिंडदान सेवा: बिहार पर्यटन विभाग द्वारा हाल ही में शुरू की गई ऑनलाइन पिंडदान सेवा ने गया में विवाद उत्पन्न कर दिया है। पारंपरिक हितधारकों, विशेषकर गया के गायवाल पंडा समाज और विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने इस पहल को धार्मिक परंपराओं के खिलाफ बताया है। इस योजना के तहत, जो लोग पितृपक्ष के दौरान गया नहीं आ सकते, उन्हें 23 हजार रुपये का एकमुश्त शुल्क जमा कर पंडा पुरोहितों के माध्यम से पिंडदान कराने की सुविधा दी जाएगी।
इन कर्मकांडों की वीडियो रिकॉर्डिंग पेन ड्राइव में उपलब्ध कराई जाएगी। इसके लिए एक ऑनलाइन पोर्टल भी विकसित किया गया है। यह सेवा आगामी 6 सितंबर से शुरू होने वाले पितृपक्ष मेले के लिए लॉन्च की गई है, लेकिन इसका विरोध किया जा रहा है। गया टाउन विधायक और सहकारिता मंत्री प्रेम कुमार ने पंडा समाज की आपत्तियों को स्वीकार करते हुए कहा कि उनकी भावनाओं का सम्मान किया जाएगा और मामले की उच्च स्तर पर समीक्षा की जाएगी।
धार्मिक ग्रंथों के खिलाफ
धार्मिक ग्रंथों के विपरीत
VHP के जिला अध्यक्ष मणि लाल बारिक ने इसे धार्मिक ग्रंथों के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि गरुड़ पुराण के अनुसार, पिंडदान केवल पुत्र या पुरुष वंशज द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जा सकता है। इसे विशेष वेदियों जैसे विष्णुपद, फल्गु और अक्षयवट पर ही संपन्न होना चाहिए। उन्होंने कहा कि दूरस्थ तरीके से किया गया पिंडदान शास्त्रों के खिलाफ है और उन्होंने इसका औपचारिक विरोध दर्ज कराया है।
सनातन धर्म की आत्मा से खिलवाड़
सनातन धर्म की आत्मा से खिलवाड़
गुजरात, राजस्थान और नेपाल में धार्मिक अनुयायियों वाले वरिष्ठ पंडा महेश लाल गुप्त ने भी ऑनलाइन योजना की प्रामाणिकता पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि पिंडदान के दौरान कर्ता को 'अस्मत पिता' (मेरे पिता) कहना होता है, क्या कोई प्रतिनिधि यह कह सकता है? गुप्त का कहना है कि यह परंपरा सनातन धर्म की आत्मा से खिलवाड़ है।
व्यावसायिक रूप देने का आरोप
व्यावसायिक रूप देने का आरोप
विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के अध्यक्ष शंभू लाल बिठ्ठल ने पर्यटन विभाग पर धार्मिक आयोजन को व्यावसायिक रूप देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि केवल गायवाल पंडे ही पिंडदान कराने के लिए अधिकृत हैं, जबकि योजना में 'पुरोहितों' शब्द का उल्लेख है, जिसमें गैर-पांडा ब्राह्मण भी शामिल हो सकते हैं। जैसे-जैसे विरोध बढ़ रहा है, ऑनलाइन पिंडदान योजना का भविष्य अधर में लटक गया है। धार्मिक नेताओं और श्रद्धालुओं ने सरकार से इस योजना को परंपरागत मूल्यों और शास्त्रीय निर्देशों के मद्देनजर वापस लेने की मांग की है।