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चतुर्थ हरियाणा रंग उत्सव: मौलिक नाटकों की चुनौतियों पर चर्चा

फरीदाबाद में आयोजित चतुर्थ हरियाणा रंग उत्सव में मौलिक हिन्दी नाटकों की कमी और समाज की बदलती समस्याओं पर चर्चा की गई। सेमिनार में रंगकर्मियों ने नाटकों में योगदान देने की आवश्यकता पर जोर दिया। वक्ताओं ने मौलिक नाटकों की चुनौतियों और उनके महत्व पर अपने विचार साझा किए। इस कार्यक्रम ने रंगमंच के प्रति छात्रों और रंगकर्मियों की रुचि को बढ़ाने का प्रयास किया।
 

नाटकों में योगदान की आवश्यकता


  • हिन्दी नाटकों की कमी पर चिंता व्यक्त करते हुए आनंद सिंह भाटी


फरीदाबाद, बल्लभगढ़। रंगकर्मियों को हिन्दी के मौलिक नाटकों में योगदान देने की आवश्यकता है, क्योंकि वर्तमान में नए नाटकों की रचना में कमी आ रही है। इस विषय पर एक सेमिनार में प्रोफेसर और रंगमंच निर्देशक आनंद सिंह भाटी ने अपने विचार साझा किए। यह कार्यक्रम चतुर्थ हरियाणा रंग उत्सव ज्योति संग स्मृति नाट्य समारोह के अंतर्गत एक निजी कॉलेज, मिल्क प्लांट रोड, बल्लभगढ़ में आयोजित किया गया।


समाज की समस्याओं को नाटकों में शामिल करना जरूरी

इस सेमिनार में शहर के रंगमंच से जुड़े छात्र और एम ए हिन्दी साहित्य के विद्यार्थी शामिल हुए। वक्ताओं ने 21वीं सदी में मौलिक हिन्दी नाटकों की चुनौतियों पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उषा शर्मा ने कहा कि समाज में तेजी से बदलती समस्याओं को नाटकों में शामिल करना अनिवार्य है। आज पुराने नाटकों की मांग अधिक है, जिनमें उस समय की समस्याओं को उजागर किया गया है, जैसे आधे अधूरे, गो हत्या, गबन आदि।


मनोज ने बताया कि मौलिक हिन्दी नाटकों की चुनौतियों को समझना अब कठिन हो गया है। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा वाराणसी से पुनीत कौशल ने रंगमंचीय कार्यशाला में शास्त्रीय मूवमेंट पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पहले गांवों में रामलीला, स्वांग, नौटंकी आदि के लिए कलाकार आसानी से मिल जाते थे।


आजकल कलाकारों की कमी महसूस की जा रही है। इस अवसर पर हिन्दी साहित्य की विशेषज्ञ उषा शर्मा, मनोज कुमार, रंगकर्मी आनंद सिंह भाटी और पुनीत कौशल ने अपने विचार साझा किए।