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छठ पूजा खरना: जानें परंपरा और महत्व

छठ पूजा का महापर्व शुरू हो चुका है, और इसका दूसरा दिन खरना विशेष महत्व रखता है। इस दिन गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से बनाया जाता है। जानें इस परंपरा के पीछे के धार्मिक कारण और खरना की विधि।
 

छठ पूजा का महापर्व


छठ पूजा का दूसरा दिन: खरना
छठ पूजा का महापर्व शुरू हो चुका है और आज इसका दूसरा दिन है, जिसे खरना कहा जाता है। इस दिन गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद बनाने की परंपरा है, जो मिट्टी के चूल्हे पर तैयार किया जाता है। खास बात यह है कि प्रसाद बनाने के लिए केवल आम की लकड़ी का उपयोग किया जाता है। आइए जानते हैं इसके पीछे की परंपरा और धार्मिक महत्व।


खरना का महत्व

धर्म शास्त्रों में खरना के दिन का विशेष महत्व बताया गया है। खरना का अर्थ है शुद्धता। इस दिन व्रति स्वच्छता और पवित्रता का ध्यान रखते हैं। मान्यता है कि इस दिन छठी मैया का घर में प्रवेश होता है, और यह दिन भक्ति और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। इस दिन सूर्य देव और छठी मैया का आशीर्वाद प्राप्त होता है।


आम की लकड़ी का उपयोग

खरना की शाम को मिट्टी का चूल्हा बनाया जाता है, जिसमें आम की लकड़ियों का उपयोग किया जाता है। आम की लकड़ी को शुद्ध और सात्विक माना जाता है। मान्यता है कि यह लकड़ी छठी मैया को प्रिय है, इसलिए प्रसाद बनाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।


खरना की विधि


  • खरना के दिन व्रती महिलाएं मिट्टी के नए चूल्हे पर गुड़ और चावल की खीर बनाती हैं।

  • यह खीर पीतल के बर्तन में गुड़, चावल और दूध से तैयार की जाती है।

  • साथ ही गेहूं के आटे से रोटी, पूड़ी या ठेकुआ बनाया जाता है।

  • इस खीर का भोग छठी मैया को अर्पित किया जाता है।

  • इसके बाद इसे सभी लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

  • फिर 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है।