दिल्ली यूनिवर्सिटी चुनाव: हर छात्र को मिलेगा मौका, एसैप की नई पहल
दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्र राजनीति में बदलाव
दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति लंबे समय से कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों, राजनीतिक दलों और गुंडागर्दी करने वाले समूहों के नियंत्रण में रही है। चुनावी टिकट अब मुद्दों के बजाय पैसे, जाति और बाहुबल के आधार पर वितरित होते हैं। छात्र राजनीति की नींव रखने वाले महत्वपूर्ण मुद्दे जैसे फीस वृद्धि, हॉस्टल और लैब की कमी, महिला सुरक्षा और भेदभाव पर वर्षों से चुप्पी बनी रही है। एबीवीपी और एनएसयूआई ने कैंपस को एक निजी ठेके की तरह संचालित किया, जहां उन्होंने सेटिंग करके डूसू छात्रसंघ पर बारी-बारी से कब्जा किया। लेकिन छात्रों के हितों की आवाज कभी नहीं उठाई गई।
हर छात्र लड़ेगा चुनाव
इस बार आम आदमी पार्टी का छात्र संगठन एसैप डूसू छात्र संघ चुनाव में भाग लेगा और एबीवीपी तथा एनएसयूआई की गुंडागर्दी को चुनौती देगा। एसैप का मानना है कि छात्र राजनीति किसी एक पार्टी के नेताओं की संपत्ति नहीं हो सकती। नेतृत्व उन छात्रों के हाथ में होना चाहिए जो पढ़ाई में अच्छे हैं, मेहनती हैं, ईमानदार हैं और अपने कॉलेज और विश्वविद्यालय को बेहतर बनाना चाहते हैं।
चुनाव के लिए फॉर्म भरने की अंतिम तिथि
जो छात्र डूसू या कॉलेज यूनियन का चुनाव लड़ना चाहते हैं, उन्हें तीन सरल कदम पूरे करने होंगे। पहले, एक पंजीकरण फॉर्म भरना होगा, जिसकी अंतिम तिथि 25 अगस्त है। दूसरे, एक मिनट का वीडियो या ऑडियो बनाना होगा जिसमें वे अपने मुद्दों को स्पष्ट रूप से रखेंगे। तीसरे, 200-500 शब्दों में अपना एजेंडा बताना होगा। कॉलेज यूनियन के लिए, 5 अलग-अलग सेक्शन से 10 छात्रों का समर्थन जुटाना होगा और डूसू के लिए 5 कॉलेजों से 50 छात्रों का समर्थन आवश्यक है।
एसैप की राजनीति: पारदर्शिता और जवाबदेही
एसैप की राजनीति पारदर्शिता, जवाबदेही और मुद्दों पर आधारित है। यह नेतृत्व को कुछ हाथों से निकालकर छात्रों के बीच वापस लाने की कोशिश है। यह केवल एक संगठन नहीं, बल्कि एक आंदोलन है जो चाहता है कि विश्वविद्यालय से ऐसे नेता उभरें जो जनता की आवाज बनें, भ्रष्टाचार से लड़ें और लोकतंत्र को मजबूत करें। इस बार डूसू चुनाव में न पैसा चलेगा, न बाहुबल, न परिवारवाद। इस बार आपका विज़न, आपकी नीयत और आपकी सोच महत्वपूर्ण होगी। एसैप हर छात्र से कहता है कि अगर आपने अब भी चुप्पी साधी, तो बदलाव की संभावना फिर टल जाएगी। लेकिन अगर आप उठे और आगे आए, तो दिल्ली विश्वविद्यालय की राजनीति का चेहरा हमेशा के लिए बदल जाएगा।