दिवाली पर ग्रीन पटाखों का महत्व: प्रदूषण कम करने का एक उपाय
प्रदूषण की समस्या और ग्रीन पटाखों का समाधान
दिवाली के आगमन से पहले ही प्रदूषण ने अपने प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया है। दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) खतरनाक स्तर पर पहुँच गया है, जिसके चलते आज से GRAP-2 लागू किया गया है। इस स्थिति को देखते हुए, दिल्ली-एनसीआर में पटाखे जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसके अलावा, सभी शहरों में एक निश्चित समय के लिए पटाखे जलाने की अनुमति दी गई है, या केवल ग्रीन पटाखों को जलाने की इजाजत है। दिवाली के दौरान पटाखों के जलाने से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए यह कदम उठाया गया है। इस कारण से ग्रीन पटाखों की मांग में वृद्धि हुई है। आइए जानते हैं ग्रीन पटाखे क्या हैं और ये सामान्य पटाखों से कैसे भिन्न हैं।
ग्रीन पटाखे: पर्यावरण के अनुकूल विकल्प
ग्रीन पटाखे क्या हैं और सामान्य पटाखों से कितने अलग हैं?
सामान्य पटाखों में बारूद और अन्य ज्वलनशील रसायन होते हैं, जो जलने पर भारी मात्रा में प्रदूषण फैलाते हैं। इसके विपरीत, ग्रीन पटाखे पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। इनका विकास राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (CSIR-NEERI) द्वारा प्रदूषण को नियंत्रित करने के उद्देश्य से किया गया था। ग्रीन पटाखे सामान्य पटाखों के समान दिखते हैं, लेकिन आकार में छोटे होते हैं और कम शोर करते हैं। ये पटाखे जलने के बाद आसपास की धूल को सोख लेते हैं, जबकि सामान्य पटाखे इसके विपरीत कार्य करते हैं।
क्या ग्रीन पटाखों से प्रदूषण नहीं होता?
क्या ग्रीन पटाखों से प्रदूषण नहीं होता?
यह कहना गलत होगा कि ग्रीन पटाखों से कोई प्रदूषण नहीं होता। इनसे भी प्रदूषण होता है, लेकिन यह सामान्य पटाखों की तुलना में काफी कम होता है। ग्रीन पटाखों में डस्ट रिपेलेंट मिलाया जाता है, जिससे वायु में प्रदूषण कम होता है। इनमें हानिकारक रसायनों जैसे एल्यूमीनियम, पोटेशियम नाइट्रेट और कार्बन की मात्रा बहुत कम होती है। ग्रीन पटाखों से अधिकतम 110 से 125 डेसिबल तक ध्वनि प्रदूषण होता है, जबकि सामान्य पटाखों से यह 160 डेसिबल तक पहुँच सकता है।