नई तकनीक से मलद्वार के जरिए सांस लेने की संभावना
अनूठी खोज: मलद्वार से सांस लेने की तकनीक
हालांकि यह सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसान अब 'पीछे के रास्ते' से भी ऑक्सीजन ले सकता है। जापान और अमेरिका के शोधकर्ताओं ने एक नई तकनीक विकसित की है, जिसके माध्यम से फेफड़ों की विफलता की स्थिति में शरीर को मलद्वार के जरिए ऑक्सीजन प्रदान की जा सकती है।
एंट्रल वेंटिलेशन: एक नई वैज्ञानिक भाषा
इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक रूप से एंट्रल वेंटिलेशन कहा जाता है। हाल ही में इसके पहले मानव परीक्षण सफल रहे हैं, और विशेषज्ञ इसे भविष्य की जीवनरक्षक तकनीक मानते हैं।
प्रकृति से मिली प्रेरणा
हालांकि यह प्रयोग नया है, इसकी प्रेरणा प्रकृति से मिली है। जापानी वैज्ञानिकों ने 'लोच' नामक मछली से प्रेरणा ली, जो ऑक्सीजन की कमी के समय पानी की सतह से हवा को निगलकर अपने पाचन तंत्र के माध्यम से ऑक्सीजन अवशोषित करती है। इसी सिद्धांत पर एंट्रल वेंटिलेशन की खोज की गई।
अन्य जीवों में भी है यह क्षमता
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि कुछ कछुए, समुद्री जीव और सूअर भी इस तरह से सांस ले सकते हैं। इसे वैज्ञानिकों ने 'बैकडोर ब्रीदिंग' नाम दिया है। 2021 में इस पर प्रारंभिक अध्ययन किया गया और 2024 में इसे Ig Nobel Prize से सम्मानित किया गया।
मानव परीक्षण की सफलता
ओसाका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ताकानोरी ताकेबे के नेतृत्व में 27 स्वस्थ पुरुषों पर पहला परीक्षण किया गया। उन्हें एक विशेष परफ्लूरोकार्बन लिक्विड (ऑक्सीजन रहित) को 60 मिनट तक शरीर में रखने के लिए कहा गया। 20 प्रतिभागियों को कोई समस्या नहीं हुई, जबकि सात को हल्की सूजन और असहजता का अनुभव हुआ। महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी को भी गंभीर साइड इफेक्ट नहीं हुए।
भविष्य की संभावनाएं
अब वैज्ञानिक इस तरल को ऑक्सीजन से भरने की योजना बना रहे हैं ताकि यह सीधे रक्त प्रवाह में पहुंच सके। विशेषज्ञों का मानना है कि यह तकनीक उन मरीजों के लिए वरदान साबित हो सकती है जिनके फेफड़े ठीक से काम नहीं कर रहे हैं या जिन्हें वेंटिलेटर नहीं मिल पा रहा।
अगले चरण की तैयारी
ताकेबे का कहना है कि अगला लक्ष्य यह जानना है कि यह प्रक्रिया रक्त में ऑक्सीजन पहुंचाने में कितनी प्रभावी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि यह सफल होता है, तो यह गंभीर COPD और अन्य फेफड़े संबंधी रोगियों के लिए जीवनदायिनी साबित हो सकता है।