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पूर्वोत्तर भारत में बाढ़ और भूस्खलन: क्या जलवायु परिवर्तन का संकेत है?

पूर्वोत्तर भारत में असम और अरुणाचल प्रदेश में बाढ़ और भूस्खलन ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। राहत कार्य जारी हैं, लेकिन स्थिति गंभीर बनी हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि ये आपदाएं जलवायु परिवर्तन का संकेत हो सकती हैं। जानें इस संकट के बारे में और क्या कदम उठाए जा रहे हैं।
 

प्राकृतिक आपदाओं का कहर जारी

नई दिल्ली. पूर्वोत्तर भारत में हर साल प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर जैसे राज्यों में भारी बारिश के चलते बाढ़ और भूस्खलन ने जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। गुरुवार को असम में स्थिति में थोड़ी सुधार देखने को मिली, लेकिन सामान्य स्थिति से अभी भी बहुत दूर है। असम और अरुणाचल प्रदेश में अब तक 50 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, और 1500 से ज्यादा गांव बुरी तरह प्रभावित हैं।


असम में बाढ़ की गंभीरता

असम में स्थिति गंभीर, काजीरंगा जलमग्न


असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (ASDMA) के अनुसार, राज्य में मरने वालों की संख्या 21 तक पहुँच गई है, जिसमें बच्चे और बुजुर्ग भी शामिल हैं। बाढ़ ने 12 जिलों में व्यापक तबाही मचाई है, जिससे लगभग 5.6 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। इनमें से हजारों लोगों को राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ी है, जहां खाने-पीने और दवाओं की सीमित व्यवस्था है। सबसे अधिक प्रभावित श्रीभूमि जिला है, जहां 215,000 लोग बाढ़ की चपेट में आए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क संपर्क पूरी तरह से बाधित हो गया है, जिससे राहत कार्य में कठिनाई हो रही है।


काजीरंगा में वन्यजीव संकट

काजीरंगा डूबा, वन्यजीव संकट में


असम का प्रसिद्ध काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान भी जलमग्न हो गया है। यहां के गैंडे, हाथी और हिरण जैसे दुर्लभ वन्यजीवों के जीवन पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। कई जानवर ऊंचे स्थानों की ओर भागते देखे गए हैं, जबकि कुछ की मौत भी हो गई है। निचले इलाकों में जलभराव के कारण रेल सेवाएं पूरी तरह से बाधित हो चुकी हैं। कई छोटी दूरी की ट्रेनें रद्द कर दी गई हैं और लंबी दूरी की ट्रेनों का संचालन या तो रोका गया है या सीमित कर दिया गया है, जिससे हजारों यात्री फंसे हुए हैं।


अरुणाचल प्रदेश में भूस्खलन का कहर

अरुणाचल प्रदेश में भूस्खलन से तबाही


अरुणाचल प्रदेश की स्थिति भी चिंताजनक बनी हुई है। राज्य के 24 जिलों में 33,000 से अधिक लोग बाढ़ और भूस्खलन की मार झेल रहे हैं। 481 मकान पूरी तरह या आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं और 432 मवेशी मारे गए हैं। कई जगहों पर खेत और फसलें भी तबाह हो गई हैं, जिससे ग्रामीणों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया है। पिछले 24 घंटों में राज्य के विभिन्न हिस्सों में अचानक हुए भूस्खलन से कम से कम 9 लोगों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा अन्य आपदाजनित घटनाओं में 3 और लोगों की जान चली गई है। सड़कों पर मलबा जमा होने से परिवहन पूरी तरह ठप है और कई गांवों का संपर्क जिला मुख्यालयों से कट गया है।


सेना का राहत अभियान

सेना ने संभाला मोर्चा; 'ऑपरेशन जलराहत' जारी


स्थिति की गंभीरता को देखते हुए केंद्र सरकार ने सेना और अर्द्धसैनिक बलों को राहत अभियान में लगा दिया है। भारतीय सेना और असम राइफल्स ने 'ऑपरेशन जलराहत' नाम से एक व्यापक राहत और बचाव अभियान शुरू किया है। इस ऑपरेशन में सैकड़ों सैनिक दिन-रात लगे हुए हैं, जो बचाव नौकाओं, ट्रकों और हेलीकॉप्टरों के माध्यम से फंसे हुए लोगों तक पहुंच बना रहे हैं। अब तक हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया गया है, लेकिन दुर्गम और दूरदराज के इलाकों में बचाव कार्य अभी भी चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। खराब मौसम, टूटी सड़कों और मोबाइल नेटवर्क की अनुपलब्धता ने राहत कार्यों को और जटिल बना दिया है। प्रशासन ने लोगों से धैर्य बनाए रखने और अफवाहों से बचने की अपील की है।


जलवायु परिवर्तन का संकेत?

क्या यह जलवायु संकट का संकेत है?


विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की लगातार आपदाएं सिर्फ मौसमी लहरें नहीं हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन की सीधी चेतावनी हैं। असम, अरुणाचल और मिजोरम में पिछले कुछ वर्षों में बाढ़ और भूस्खलन की तीव्रता बढ़ी है। ब्रह्मपुत्र जैसी नदियां लगातार उफान पर हैं, जो शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों के लिए खतरनाक संकेत है।