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भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान पहले सूर्य देव को दिया था

श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान केवल अर्जुन को नहीं, बल्कि पहले सूर्य देव को दिया गया था। जानें कैसे यह ज्ञान समय-समय पर विभिन्न महापुरुषों को प्रदान किया गया। गीता का संदेश जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन और कर्तव्य की पहचान है। इस लेख में हम गीता के अद्भुत ज्ञान और इसके पहले श्रोता के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
 

गीता का अद्भुत ज्ञान


जब भी श्रीमद्भगवद्गीता का जिक्र होता है, तो हमारे मन में कुरुक्षेत्र के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश की छवि उभरती है। यह गीता आज भी आध्यात्मिकता और जीवन के दर्शन की एक महत्वपूर्ण पुस्तक मानी जाती है।


क्या आप जानते हैं?

क्या आपको पता है कि अर्जुन से पहले भी भगवान श्रीकृष्ण ने किसी और को गीता का ज्ञान दिया था? यह एक ऐसा सवाल है जिसका सही उत्तर बहुत कम लोग जानते हैं।


वास्तव में, भगवान ने यह दिव्य ज्ञान पहले "सूर्य देव" को दिया था।


गीता के चौथे अध्याय में खुलासा

श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 4 (ज्ञानयोग) के श्लोक 1 और 2 में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं:



इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्॥



इसका अर्थ है – इस अविनाशी ज्ञान को मैंने पहले सूर्य (विवस्वान) को बताया, फिर सूर्य ने मनु को, और मनु ने इक्ष्वाकु को बताया।


सूर्य देव का ज्ञान

यह श्लोक स्पष्ट करता है कि गीता का ज्ञान नया नहीं था। भगवान श्रीकृष्ण ने इसे विभिन्न महापुरुषों और देवताओं को समय-समय पर दिया। अर्जुन को यह ज्ञान युद्ध के समय पुनः याद दिलाया गया था।


सूर्य देव कैसे बने पहले श्रोता?

भगवान श्रीकृष्ण ने विवस्वान अर्थात सूर्य देव को यह ज्ञान सृष्टि के आरंभ में दिया, जब संसार का निर्माण हो रहा था। सूर्य देव को यह ज्ञान इसलिए दिया गया क्योंकि वे सम्पूर्ण ब्रह्मांड को प्रकाश देने वाले हैं।


इसके बाद सूर्य ने इसे मनु को दिया, जो मानव जाति के पहले पूर्वज माने जाते हैं। फिर मनु ने इसे इक्ष्वाकु को दिया, जिससे सूर्यवंश की शुरुआत हुई।


लोगों की गलतफहमी

कई लोग मानते हैं कि गीता का ज्ञान केवल अर्जुन को दिया गया था, क्योंकि यही प्रसंग सबसे प्रसिद्ध है। लेकिन वे गीता के श्लोकों का गहन अध्ययन नहीं करते, जिससे वे इस महत्वपूर्ण तथ्य को नहीं जान पाते।


गीता का संदेश

गीता केवल युद्ध का उपदेश नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन, कर्तव्य और आत्मा के सच्चे स्वरूप की पहचान का माध्यम है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान इसलिए दिया ताकि वह अपने धर्म को पहचान सके।


निष्कर्ष

तो अगली बार जब कोई पूछे कि श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान सबसे पहले किसे मिला था, तो याद रखें – उत्तर है "सूर्य देव"। अर्जुन तो केवल उस ज्ञान की अगली कड़ी थे, जिसे समय-समय पर ईश्वर स्वयं धर्म की रक्षा हेतु प्रकट करते हैं।


यही है सनातन सत्य।