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महाभारत युद्ध: बलराम और भीम के बीच का विवाद

महाभारत का युद्ध केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि मानवता के कल्याण के लिए लड़ा गया एक संघर्ष था। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे बलराम और भीम के बीच का विवाद युद्ध के अंतिम चरण में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाया। दुर्योधन की हार और उसके मामा शकुनि की मृत्यु के बाद की घटनाओं का विवरण भी प्रस्तुत किया गया है। जानें इस महाकाव्य के अद्भुत पहलुओं के बारे में।
 

महाभारत का युद्ध: एक ऐतिहासिक घटना


महाभारत का युद्ध मानवता के कल्याण के लिए लड़ा गया था। यह युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ और इसे महाभारत काल की सबसे महत्वपूर्ण घटना माना जाता है। यह संघर्ष कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था। 18 दिनों तक चले इस युद्ध में कई महान योद्धा शहीद हुए। कौरवों की ओर से भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य जैसे शक्तिशाली योद्धा शामिल थे, जबकि पांडवों की ओर से भगवान कृष्ण और अन्य योद्धा युद्ध में शामिल हुए। लेकिन जब युद्ध अपने अंतिम चरण में पहुंचा, तब एक ऐसा मोड़ आया जब भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम, महाबली भीम से इतने नाराज हो गए कि उन्होंने भीम को मारने के लिए तलवार उठाई।


युद्ध का कारण

कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध में दोनों पक्षों के योद्धा एक-एक करके मारे जा रहे थे। महाभारत युद्ध के 18वें दिन सहदेव ने दुर्योधन के मामा शकुनि का वध कर दिया। इसके बाद दुर्योधन ने खुद को कमजोर महसूस किया, क्योंकि वह हमेशा शकुनि की बुद्धि पर निर्भर रहता था। शकुनि की मृत्यु के बाद कौरव सेना में केवल अश्वत्थामा, कृतवर्मा, कृपाचार्य और दुर्योधन ही बचे थे।


भीम का दुर्योधन पर प्रहार

दुर्योधन थकान के कारण लड़ने की स्थिति में नहीं था और वह सरोवर में छिप गया। लेकिन पांडवों को उसकी स्थिति का पता चल गया। भीम ने दुर्योधन की जांघ तोड़ दी और उसे मारकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की। दुर्योधन पर किए गए प्रहार के कारण भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम भीम से बहुत नाराज हो गए। बलराम ने भीम को चेतावनी दी कि नाभि के नीचे प्रहार करना गदा युद्ध के नियमों के खिलाफ है।


बलराम का भीम पर हमला

बलराम ने भीम से कहा कि यह अधर्म है और इसके बाद उन्होंने अपना हल उठाया और भीम पर हमला करने का प्रयास किया। यह देखकर श्रीकृष्ण ने बलराम को रोकने की कोशिश की। उन्होंने बलराम को समझाया कि कई बार पापी और अधर्मी व्यक्ति के लिए नियम तोड़ना आवश्यक होता है। लेकिन बलराम संतुष्ट नहीं हुए और क्रोधित होकर द्वारका चले गए। अंततः दुर्योधन ने कुरुक्षेत्र की धरती पर अपने प्राण त्याग दिए।