महाराष्ट्र में शक्तिपीठ एक्सप्रेसवे का निर्माण: धार्मिक स्थलों को जोड़ेगा नया हाई-स्पीड कॉरिडोर
शक्तिपीठ एक्सप्रेसवे का महत्व
शक्तिपीठ एक्सप्रेसवे: महाराष्ट्र कैबिनेट ने नागपुर-गोवा शक्तिपीठ एक्सप्रेसवे के लिए भूमि अधिग्रहण और योजना को हरी झंडी दे दी है। यह 802 किलोमीटर लंबा हाई-स्पीड कॉरिडोर, जिसे आधिकारिक तौर पर महाराष्ट्र शक्तिपीठ महामार्ग कहा जाता है, वर्धा जिले के पवनार को सिंधुदुर्ग में पात्रादेवी से जोड़ेगा। यह एक्सप्रेसवे राज्य के 11 जिलों से होकर गुजरेगा और तीन शक्तिपीठों, दो ज्योतिर्लिंगों, और पंढरपुर तथा अंबाजोगाई जैसे प्रमुख धार्मिक स्थलों को एक साथ लाएगा। इसमें महालक्ष्मी मंदिर (कोल्हापुर), तुलजा भवानी मंदिर (धाराशिव), और रेणुका माता शक्ति पीठ (नांदेड़) जैसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल शामिल हैं।
भूमि अधिग्रहण और मुआवजा
भूमि मालिकों को मिलेगा मुआवजा
इस एक्सप्रेसवे के लिए भूमि अधिग्रहण हेतु 20,787 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया है। यह परियोजना राज्य द्वारा संचालित बुनियादी ढांचा निगम के माध्यम से लागू की जाएगी, जिसमें भूमि अधिग्रहण और प्रारंभिक योजना की देखरेख लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) करेगा। परियोजना के लिए आवश्यक 8,419 हेक्टेयर में से लगभग 8,100 हेक्टेयर भूमि व्यक्तिगत किसानों की है। कोल्हापुर और उसके आस-पास के शुगर बेल्ट जिलों में विरोध के कारण इस परियोजना पर काम रोक दिया गया था।
परियोजना की लागत और समयसीमा
80,000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत
शक्तिपीठ एक्सप्रेसवे को एक धार्मिक और सांस्कृतिक गलियारे के रूप में विकसित किया जाएगा, जिसका उद्देश्य विदर्भ, मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र के धार्मिक स्थलों को जोड़ना है। यह एक्सप्रेसवे वर्धा, यवतमाल, हिंगोली, नांदेड़, परभणी, लातूर, बीड, धाराशिव, सोलापुर, कोल्हापुर और सिंधुदुर्ग से होकर गुजरेगा। परियोजना के लिए अब 20,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, और इसकी कुल लागत लगभग 80,000 करोड़ रुपये होने की संभावना है। अधिकारियों का कहना है कि इस एक्सप्रेसवे के बन जाने के बाद नागपुर से गोवा की यात्रा केवल 8 घंटे में पूरी हो जाएगी, जबकि वर्तमान में इसमें 18 घंटे लगते हैं।