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शादी के खर्च को कम करने के लिए सरकारी योजनाएँ: जानें कैसे मिल सकता है आर्थिक सहयोग

भारत में हर साल लाखों शादियाँ होती हैं, जिनका खर्च 10 से 15 लाख रुपये तक पहुँच सकता है। ऐसे में कई परिवारों को कर्ज या उधारी का सहारा लेना पड़ता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सरकार द्वारा कई योजनाएँ चलाई जाती हैं, जो शादी के बाद आर्थिक सहायता प्रदान करती हैं? इस लेख में हम केंद्र और राज्य सरकारों की योजनाओं के बारे में जानेंगे, जो अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहित करती हैं और वित्तीय सहायता उपलब्ध कराती हैं।
 

शादी के खर्चों का बढ़ता बोझ


हर वर्ष भारत में लाखों शादियाँ होती हैं, जिसके चलते शादी के जुलूस और अन्य आयोजनों की बुकिंग महीनों पहले से ही कर ली जाती है। एक सामान्य शादी का खर्च आजकल 10 से 15 लाख रुपये तक पहुँच जाता है। ऐसे में कई परिवारों को इसके लिए कर्ज लेना या दोस्तों और रिश्तेदारों से पैसे उधार लेना पड़ता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देशभर में कई ऐसी योजनाएँ हैं, जिनमें शादी के बाद सरकार की ओर से आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है?


केंद्र और राज्य सरकार की योजनाएँ

वास्तव में, अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा कई योजनाएँ चलाई जाती हैं। इन योजनाओं का लाभ उन दांपत्य जोड़ों को मिलता है, जिनकी शादी दूसरे राज्य में दूसरी जाति की लड़की से हुई है। इसका अर्थ है कि यदि ऊँची जाति के लोग दलित परिवार में विवाह करते हैं, तो उन्हें अंतरजातीय विवाह योजना के तहत वित्तीय सहायता मिल सकती है।


डॉ। अम्बेडकर फाउंडेशन, दलित परिवार में विवाह करने वाले उच्च जाति के परिवारों को लगभग 2.5 लाख रुपये की सहायता प्रदान करता है। यह राशि केंद्र सरकार द्वारा दी जाती है और यह योजना 2013 में शुरू की गई थी। इसके बाद से कई दांपत्य जोड़े इस योजना का लाभ उठा चुके हैं।


राज्यों में उपलब्ध वित्तीय सहायता

केंद्र सरकार के अलावा, विभिन्न राज्य सरकारें भी अंतरजातीय विवाह के लिए ऐसी योजनाएँ संचालित करती हैं। उदाहरण के लिए, राजस्थान सरकार दलित से विवाह करने पर 5 लाख रुपये की सहायता देती है, जबकि उत्तर प्रदेश सरकार 50 हजार से 2 लाख रुपये तक की सहायता प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त, हरियाणा सरकार भी 2.5 लाख रुपये की वित्तीय सहायता देती है। महाराष्ट्र सरकार भी इस प्रकार की योजनाएँ चलाती है।