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हिंदू विवाह में सिंदूर का महत्व: तीन बार भरने की परंपरा

हिंदू विवाह में सिंदूर का महत्व केवल सजावट तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक गहरा धार्मिक प्रतीक है। इस लेख में हम जानेंगे कि विवाह के दौरान सिंदूर क्यों तीन बार भरा जाता है और इसके पीछे के धार्मिक अर्थ क्या हैं। देवी लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती के आशीर्वाद से जुड़े इस रिवाज़ का महत्व जानकर आप भी इसकी गहराई को समझ पाएंगे।
 

सिंदूर: एक धार्मिक प्रतीक


नई दिल्ली: भारत में विवाहित महिलाओं के लिए सिंदूर केवल एक सजावट नहीं है, बल्कि यह एक गहरा धार्मिक प्रतीक भी है। यह परंपरा विवाह के पवित्र बंधन को स्वीकार करने, पति की लंबी उम्र की कामना करने और सुखद दांपत्य जीवन का संकेत देती है। हिंदू धर्म में इसे विवाह का सबसे महत्वपूर्ण चिह्न माना जाता है।


सिंदूर भरने की प्रक्रिया शादी के मंडप में दूल्हा द्वारा दुल्हन की मांग भरने से शुरू होती है। यह क्षण विवाह को पूर्णता और दिव्यता प्रदान करता है। दिलचस्प बात यह है कि सिंदूर को केवल एक बार नहीं, बल्कि तीन बार भरा जाता है, और हर बार का अपना विशेष धार्मिक महत्व होता है। आइए जानते हैं इस रिवाज़ के पीछे का संदेश।


पहली बार: लक्ष्मी का आशीर्वाद

पहली बार सिंदूर भरना देवी लक्ष्मी के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है। यह मान्यता है कि इससे दांपत्य जीवन में समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है, घर में धन की कमी नहीं होती और परिवार सुख से भरा रहता है। इसे दोनों के नए जीवन की शुभ शुरुआत माना जाता है।


दूसरी बार: सरस्वती की कृपा

दूसरी बार सिंदूर भरना देवी सरस्वती को समर्पित होता है। इसका अर्थ है कि विवाहित जीवन में समझ, संतुलन, ज्ञान और मधुर वाणी की आवश्यकता होती है। इससे घर में विवाद नहीं बढ़ते और दांपत्य जीवन प्रेम और समझ के साथ आगे बढ़ता है।


तीसरी बार: पार्वती की शक्ति

तीसरी बार सिंदूर भरने का संबंध शक्ति की देवी पार्वती से है। यह विवाह की रक्षा, बुरे प्रभावों से बचाव और वैवाहिक संबंध की मजबूती का प्रतीक है। पार्वती की शक्ति से दांपत्य जीवन में कठिनाइयाँ कम होती हैं।


नाक पर गिरना क्यों शुभ माना जाता है?

जब दूल्हा सिंदूर भरता है, तो यदि कुछ भाग नाक पर गिरता है, तो इसे शुभ माना जाता है। नाक को सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है, इसलिए नाक पर सिंदूर गिरना सौभाग्य और प्रेम का संकेत होता है।


एक साल तक वही सिंदूर लगाने की मान्यता

यह मान्यता है कि विवाह के समय लगाया गया वही सिंदूर दुल्हन को कम से कम एक वर्ष तक लगाना चाहिए। ऐसा करने से दूल्हा-दुल्हन के बीच प्रेम और विश्वास मजबूत बना रहता है।