AI तकनीक से खोए प्रियजनों की आवाज़ को फिर से जीवित करना
डिजिटल युग में AI का प्रभाव
आज के डिजिटल युग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने मानव जीवन को एक नई दिशा दी है। यह तकनीक न केवल हमारी आवश्यकताओं को पूरा कर रही है, बल्कि हमारे खोए हुए प्रियजनों की आवाज़ को भी पुनर्जीवित कर सकती है। जब कोई व्यक्ति इस दुनिया से चला जाता है, तो उसकी यादें केवल तस्वीरों या वीडियो तक सीमित रह जाती हैं, लेकिन अब एक नया सॉफ्टवेयर वर्चुअल बातचीत की सुविधा प्रदान करता है, जैसे कि वह व्यक्ति हमारे सामने हो।‘Creepy AI’ नामक एक नया उपकरण सामने आया है, जो मृतकों के प्रियजनों की आवाज़ और बोलने के तरीके की सटीक नकल करता है। यह प्रणाली पुराने ऑडियो रिकॉर्डिंग और बातचीत के तरीकों का विश्लेषण करके उपयोगकर्ताओं से संवाद करती है। हालांकि यह वास्तविक बातचीत नहीं होती, बल्कि मशीन द्वारा निर्मित होती है, फिर भी इसका भावनात्मक प्रभाव गहरा होता है।
भावनात्मक जुड़ाव और संभावित खतरे
यह तकनीक कुछ उपयोगकर्ताओं के लिए एक राहत का स्रोत बन रही है। कई लोग इससे अपने खोए हुए रिश्तों को फिर से अनुभव कर पा रहे हैं और उनसे सलाह-मशवरा भी कर रहे हैं। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के वर्चुअल संबंध वास्तविक जीवन से दूर कर सकते हैं। लंबे समय तक इसका उपयोग करने से व्यक्ति कल्पनाओं की दुनिया में खो सकता है, जहां असली और नकली के बीच की सीमाएं धुंधली हो जाती हैं।
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जब कोई व्यक्ति इस कल्पनात्मक संवाद को वास्तविकता मानने लगता है, तो उसकी मानसिक स्थिति प्रभावित हो सकती है। इससे मानसिक तनाव और सामाजिक अलगाव जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए, विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि इस तकनीक को एक उपकरण के रूप में ही देखा जाए, न कि वास्तविक रिश्तों का विकल्प।
डेटा सुरक्षा के मुद्दे
इस AI तकनीक के पीछे एक महत्वपूर्ण सवाल है - उपयोगकर्ता द्वारा प्रदान किए गए संवेदनशील डेटा की सुरक्षा। मृतक की आवाज़ और बातचीत के रिकॉर्डिंग इस प्रणाली में संग्रहित होते हैं, जिससे डेटा लीक या दुरुपयोग का खतरा बढ़ जाता है। साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि गलत हाथों में यह जानकारी साइबर अपराध, पहचान चोरी या धोखाधड़ी के लिए उपयोग की जा सकती है।
Creepy AI विकसित करने वाली कंपनी का दावा है कि उनका उद्देश्य लोगों को भावनात्मक सहारा देना है, ताकि वे अपने प्रियजनों की यादों से जुड़े रहें। हालांकि, विशेषज्ञ इस दावे को लोगों की भावनाओं का शोषण मानते हैं, क्योंकि इससे भावनात्मक निर्भरता बढ़ सकती है और निजी डेटा के दुरुपयोग के रास्ते खुल सकते हैं।