C-295MW विमान से भारत की रक्षा क्षमता में वृद्धि
C-295MW विमान का महत्व
भारत की रक्षा क्षमताओं को नई ऊंचाई पर ले जाने वाला C-295MW विमान अब वायुसेना के साथ-साथ भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल की ताकत को भी बढ़ाएगा। पुराने और सीमित क्षमताओं वाले विमानों को हटाकर, अत्याधुनिक मल्टीरोल टैक्टिकल एयरक्राफ्ट को शामिल किया जा रहा है। इससे सीमाओं पर तैनाती और सामान की ढुलाई में आसानी होगी, साथ ही समुद्री निगरानी और आपदा राहत जैसे मिशनों में भी सुधार होगा।
नौसेना और तटरक्षक बल के लिए विमान
भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल अब C-295MW विमान को अपने बेड़े में शामिल करने की योजना बना रहे हैं। इस साल मार्च में इसके लिए रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (RFP) जारी किया गया था, जिसे डिफेंस एक्विजिशन काउंसिल ने मंजूरी दी है। प्रस्ताव के अनुसार, नौसेना को 9 और तटरक्षक बल को 6 विमान मिलेंगे, जिनका उपयोग मीडियम-रेंज मैरीटाइम रिकॉग्निशन, समुद्री निगरानी, तस्करी रोकने और खोज-बचाव अभियानों में किया जाएगा।
वायुसेना को मिले विमान
भारत ने 2021 में एयरबस (स्पेन) और टाटा कंसोर्टियम (भारत) के साथ 56 C-295 विमानों का सौदा किया था। इनमें से 16 विमान सीधे स्पेन से आएंगे, जबकि बाकी 40 भारत के वडोदरा प्लांट में निर्मित किए जाएंगे। वायुसेना को अब तक 15 विमान मिल चुके हैं, और अगस्त 2026 तक पहला पूरी तरह से भारत में निर्मित 'मेक इन इंडिया' C-295 विमान सेवा में शामिल होगा।
C-295MW की डिजाइन और विशेषताएँ
C-295MW को मल्टी-रोल टैक्टिकल ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट के रूप में डिजाइन किया गया है। यह हल्का और मजबूत है, और विभिन्न ऑपरेशनों में उपयोगी है। यह 70 सैनिकों या 50 पूरी तैयारी वाले पैराट्रूपर्स को एक साथ ले जा सकता है और 5 से 10 टन तक का भार उठाने में सक्षम है।
उड़ान क्षमता और विशेषताएँ
C-295 की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह बेहद कम रनवे पर उड़ान भरने और लैंडिंग करने में सक्षम है। यह केवल 670 मीटर रनवे से उड़ान भर सकता है और 320 मीटर में लैंडिंग कर सकता है। इसमें लगे इंडिजिनस इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट इसे दुश्मन की रडार निगरानी और मिसाइल हमलों से सुरक्षित बनाते हैं।
समुद्री ताकत में वृद्धि
C-295MW विमान के आगमन से भारत की समुद्री ताकत में भी वृद्धि होगी। तटरक्षक बल इसका उपयोग समुद्री निगरानी, अवैध घुसपैठ रोकने और राहत अभियानों में करेगा, जबकि नौसेना इसका उपयोग मीडियम रेंज मैरीटाइम सर्विलांस और मल्टी-मिशन अभियानों के लिए करेगी।
पुराने विमानों का प्रतिस्थापन
C-295 उन पुराने विमानों की जगह लेगा, जिनमें Avro शामिल है, जो 1960 के दशक से सेवा में है और अब रिटायर हो रहा है। AN-32 को 2032 के बाद हटाया जाएगा, जबकि IL-76 को धीरे-धीरे फेज आउट किया जाएगा।
चुनौतियाँ और सुरक्षा रणनीति
हालांकि, इस प्रक्रिया में कुछ चुनौतियाँ भी हैं। दिसंबर 2025 तक कमर्शियल बिड्स जमा होंगी, लेकिन उत्पादन में देरी संभावित है। कुल मिलाकर, C-295MW न केवल भारत की सुरक्षा रणनीति को नया रूप देगा, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।