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CSDS पर ICSSR का कड़ा प्रहार: चुनावी डेटा में हेरफेर के आरोप

भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) ने विकासशील समाजों के अध्ययन केंद्र (CSDS) को चुनावी डेटा में हेरफेर के आरोपों पर नोटिस जारी किया है। ICSSR ने CSDS पर जानबूझकर डेटा में हेरफेर करने और चुनाव आयोग की पवित्रता को कम करने का आरोप लगाया है। इस विवाद में CSDS के सदस्य संजय कुमार पर भी FIR दर्ज की गई है। क्या CSDS इन आरोपों का संतोषजनक जवाब दे पाएगा? जानें इस मामले की पूरी कहानी और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
 

CSDS पर ICSSR का नोटिस

भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) ने विकासशील समाजों के अध्ययन केंद्र (CSDS) को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया है। इस नोटिस में चुनाव आयोग (ECI) के विशेष गहन पुनरीक्षण अभ्यास और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों पर किए गए अध्ययनों के लिए वित्तपोषण स्रोतों का खुलासा करने का आदेश दिया गया है। ICSSR ने CSDS पर "जानबूझकर डेटा में हेरफेर" करने और भारत निर्वाचन आयोग की पवित्रता को कम करने के इरादे से एक कथा बनाने का आरोप लगाया है। यह घटनाक्रम चुनावी विश्लेषण की सत्यता और शोध संस्थानों की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।


संजय कुमार पर FIR और माफी का मामला

नागपुर और नासिक पुलिस ने CSDS के एक प्रमुख सदस्य संजय कुमार के खिलाफ FIR दर्ज की है। उन पर वोटर डिक्लाइन के झूठे दावे फैलाने का आरोप है। रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने रामटेक और देवलाली में मतदाता गिरावट का दावा किया था, जिसे बाद में हटा लिया गया। संजय कुमार ने इस मामले में माफी मांगी है, यह कहते हुए कि यह त्रुटि उनके डेटा टीम द्वारा डेटा को गलत पढ़ने के कारण हुई थी।


ICSSR के आरोप और चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता

ICSSR का यह कड़ा रुख CSDS द्वारा चुनावों के अध्ययन के दौरान डेटा को गलत तरीके से प्रस्तुत करने के आरोपों को रेखांकित करता है। ICSSR के अनुसार, CSDS ने जानबूझकर एंटी-ईसीआई नैरेटिव बनाने का प्रयास किया, जिसका सीधा असर भारत निर्वाचन आयोग जैसी संवैधानिक संस्था की गरिमा पर पड़ा। ये आरोप चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता और निष्पक्षता पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाते हैं।


शोध नैतिकता और डेटा की अखंडता पर बहस

यह घटनाक्रम शोध नैतिकता और डेटा की अखंडता पर एक बड़ी बहस को जन्म दे सकता है। भारत 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' के माध्यम से अपनी क्षमताओं को बढ़ा रहा है, लेकिन इस तरह के आरोप संस्थानों की प्रतिष्ठा पर सवाल उठाते हैं। CSDS जैसे प्रतिष्ठित संस्थान का इस तरह के आरोपों में फंसना चिंताजनक है।


अगला कदम: चुनावी पारदर्शिता

ICSSR द्वारा उठाए गए कदम चुनाव प्रक्रिया की अखंडता बनाए रखने के लिए एक प्रयास हो सकते हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या CSDS इन आरोपों का संतोषजनक जवाब दे पाएगा और क्या उसके वित्तपोषण स्रोतों का खुलासा इस मामले में कोई नई रोशनी डालेगा। फिलहाल, यह मामला भारतीय राजनीति और चुनावों की पारदर्शिता पर गहन विचार-विमर्श की मांग करता है।