गेहूं की खेती के लिए महत्वपूर्ण सुझाव: पैदावार बढ़ाने के उपाय
आधुनिक कृषि तकनीकें और गेहूं की खेती
गेहूं की खेती में ध्यान देने योग्य बातें
गेहूं भारत की एक प्रमुख फसल है, जो विशेष रूप से रबी मौसम में उत्तरी क्षेत्रों में उगाई जाती है। यह खाद्यान्न फूड सिक्योरिटी को मजबूत करता है। पहले भारत को गेहूं की कमी के लिए अमेरिका जैसे देशों पर निर्भर रहना पड़ता था, लेकिन अब यह पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो चुका है और विश्व में गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है।
रबी सीजन की शुरुआत होते ही किसान गेहूं की बुआई में जुट जाते हैं। इस बार भी किसान मौसम के अनुकूल रहने की उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि केवल मौसम पर निर्भर रहना सही नहीं है। आइए जानते हैं कुछ महत्वपूर्ण कृषि तकनीकें जो इस सीजन में गेहूं की पैदावार को बढ़ा सकती हैं।
बीज और मिट्टी की तैयारी
विशेषज्ञों के अनुसार, यदि किसान सही बीज, मिट्टी की तैयारी, संतुलित खाद, समय पर सिंचाई और रोग नियंत्रण का पालन करें, तो वे अपनी गेहूं की उपज को दोगुना कर सकते हैं। आधुनिक कृषि तकनीकें न केवल पैदावार बढ़ाती हैं, बल्कि मिट्टी और पर्यावरण को भी स्वस्थ रखती हैं।
सही बीज का चयन
अच्छी फसल के लिए बीज का चयन सबसे महत्वपूर्ण कदम है। किसान अपने क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के अनुसार सर्टिफाइड और उच्च उत्पादक किस्में जैसे एचडी-2967, एचडी-3086, डीबीडब्ल्यू-187 या डीबीडब्ल्यू-343 का चयन कर सकते हैं। बुआई से पहले बीज को फफूंदनाशक दवा से उपचारित करना आवश्यक है ताकि फफूंद जनित रोगों से बचा जा सके।
मिट्टी की तैयारी और सिंचाई
मिट्टी को सही तरह से रेडी करें
मिट्टी की तैयारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। बुआई से पहले खेत की दो से तीन बार जुताई करें और अंतिम जुताई में गोबर की सड़ी हुई खाद या कंपोस्ट मिलाएं। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। जिन क्षेत्रों में नमी कम होती है, वहां लेजर लेवलर से खेत को समतल करना चाहिए।
सिंचाई और खाद का प्रबंधन
गेहूं की पहली सिंचाई बुआई के 20-22 दिन बाद करनी चाहिए, जिसे 'क्रिटिकल इरिगेशन स्टेज' कहा जाता है। इसके बाद फसल की जरूरत के अनुसार हर 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। प्रति हेक्टेयर 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश का संतुलित प्रयोग करें।
रोगों से बचाव और कटाई
इन रोगों से बचाव है जरूरी
कीट और रोग नियंत्रण भी समय पर करना आवश्यक है। गेहूं में आमतौर पर तना छेदक, पत्ती झुलसा और रतुआ रोग दिखाई देते हैं। इनसे बचाव के लिए उचित दवाओं का छिड़काव करें और खेत की नियमित निगरानी रखें। जैविक खेती करने वाले किसान नीम आधारित जैव कीटनाशकों का उपयोग कर सकते हैं।
गेहूं की कटाई और भंडारण पर भी ध्यान देना आवश्यक है। जब बालियां पूरी तरह पक जाएं और दाने कठोर हो जाएं, तब फसल की कटाई करें। कटाई के बाद दानों को पूरी तरह सुखाकर ही भंडारण करें ताकि नमी से नुकसान न हो।