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भारत की रक्षा क्षेत्र में निजी कंपनियों की नई भूमिका: आत्मनिर्भरता की ओर एक कदम

भारत सरकार ने रक्षा उत्पादन में निजी कंपनियों की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। इस कदम का उद्देश्य भारतीय सशस्त्र बलों को लंबे संघर्ष के दौरान हथियारों और गोला-बारूद की कमी से बचाना है। अब निजी कंपनियाँ विभिन्न प्रकार के गोला-बारूद और मिसाइलों का निर्माण कर सकेंगी। यह निर्णय वैश्विक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, जिसमें यूक्रेन युद्ध और अन्य संघर्ष शामिल हैं। जानें इस बदलाव के पीछे की वजहें और भविष्य की रणनीतियाँ।
 

भारत का रक्षा क्षेत्र: एक नया अध्याय

भारत का रक्षा क्षेत्र: भारतीय सरकार ने देश की रक्षा उत्पादन क्षमताओं को सशक्त बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। रक्षा मंत्रालय ने अब मिसाइलों, तोपों, गोला-बारूद और अन्य हथियारों के विकास और निर्माण के लिए निजी कंपनियों को अवसर प्रदान किया है। इस निर्णय का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी दीर्घकालिक युद्ध या संघर्ष के दौरान भारतीय सशस्त्र बलों को हथियारों और गोला-बारूद की कमी का सामना न करना पड़े।


आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव

पहले गोला-बारूद उत्पादन के लिए निजी कंपनियों को म्यूनिशंस इंडिया लिमिटेड (MIL) से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) प्राप्त करना आवश्यक था। लेकिन अब रक्षा मंत्रालय ने राजस्व खरीद नियमावली (RPM) में संशोधन कर इस शर्त को समाप्त कर दिया है। इसका परिणाम यह होगा कि निजी कंपनियां 105 मिमी, 130 मिमी, 150 मिमी तोपों के गोले, पिनाका मिसाइल, मोर्टार बम, हथगोले, और अन्य प्रकार के गोला-बारूद का निर्माण कर सकेंगी।


मिसाइल विकास में निजी क्षेत्र की भागीदारी

रक्षा मंत्रालय ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) को सूचित किया है कि मिसाइलों के निर्माण और एकीकरण में भी निजी कंपनियों को शामिल किया जाएगा। पहले केवल भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (BDL) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) ही आकाश, अस्त्र, कोंकर्स और मिलन जैसी मिसाइल प्रणालियों का निर्माण करते थे। लेकिन अब सरकार चाहती है कि निजी क्षेत्र भी इस क्षेत्र में निवेश करे।


भविष्य की युद्ध रणनीतियाँ

‘ऑपरेशन सिंदूर’ के अनुभव ने यह स्पष्ट किया है कि भविष्य की लड़ाइयों में लंबी दूरी की मिसाइलें और स्टैंड-ऑफ हथियार महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। पाकिस्तान ने इस अभियान के दौरान चीनी तकनीक से निर्मित लंबी दूरी की मिसाइलों का उपयोग किया। इस संदर्भ में, भारत ने पारंपरिक मिसाइल विकास के लिए निजी उद्योगों के लिए दरवाजे खोले हैं।


मिसाइलों की आवश्यकता

रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को ब्रह्मोस, प्रलय, शौर्य और निर्वाण जैसी और अधिक मिसाइलों की आवश्यकता है। उनका कहना है कि भविष्य में लड़ाइयाँ मुख्यतः मिसाइलों और रक्षा प्रणालियों के माध्यम से लड़ी जाएंगी। सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों के बढ़ते उपयोग के कारण लड़ाकू विमानों की भूमिका कम होती जा रही है।


ऑपरेशन सिंदूर का उदाहरण

इसका ताजा उदाहरण 10 मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान देखा गया, जब भारतीय एस-400 मिसाइल प्रणाली ने पाकिस्तानी पंजाब में 314 किलोमीटर अंदर जाकर एक ELINT विमान को निशाना बनाकर मार गिराया। यह घटना भारत की वायु रक्षा क्षमताओं और मिसाइल प्रणालियों की महत्ता को और स्पष्ट करती है।


वैश्विक परिस्थितियों का प्रभाव

रक्षा मंत्रालय का यह निर्णय केवल घरेलू आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए नहीं लिया गया है, बल्कि वैश्विक परिस्थितियों का भी इसमें बड़ा योगदान है। यूक्रेन युद्ध और गाजा संघर्ष ने यह स्पष्ट कर दिया है कि लंबे युद्धों में मिसाइलों और गोला-बारूद की मांग तेजी से बढ़ जाती है। रूस और पश्चिमी देशों के बीच चल रहे संघर्ष तथा मध्य-पूर्व में तनाव से हथियारों का बाजार दबाव में है।