हरदीप सिंह पुरी ने लिटरेचर फेस्टिवल पैनल चर्चा में डीयू की विरासत पर प्रकाश डाला
नई दिल्ली, 22 फ रवरी (हि.स.)। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने आज दिल्ली विश्वविद्यालय के लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान एक पैनल चर्चा में भाग लिया, जहां उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली विश्वविद्यालय के विकास, शिक्षा और समाज में इसके महत्वपूर्ण योगदान के बारे में बात की। पैनल में बेस्ट-सेलर “स्वैलोइंग द सन” की प्रशंसित लेखिका लक्ष्मी पुरी, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल और करंजावाला एंड कंपनी के मैनेजिंग पार्टनर रेयान करंजावाला जैसे प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल थे।
चर्चा के दौरान हरदीप पुरी ने दिल्ली विश्वविद्यालय की समृद्ध विरासत के बारे में विस्तार से बताया और इस बात पर जोर दिया कि कैसे इसके संकाय, छात्रों और प्रशासकों ने इसे भारत के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में से एक बनाया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विश्वविद्यालयों को अपनी पारंपरिक शैक्षणिक उत्कृष्टता को बनाए रखते हुए कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग जैसे क्षेत्रों में नए विकास के लिए लगातार अनुकूलन करना चाहिए।
चर्चा का मुख्य आकर्षण हरदीप सिंह पुरी द्वारा स्वयं संपादित पुस्तक “दिल्ली विश्वविद्यालय – 100 गौरवशाली वर्ष मनाना” थी। इस संकलन में प्रख्यात विद्वानों और पूर्व छात्रों के निबंधों को एक साथ लाया गया है, जो विश्वविद्यालय की जीवंत संस्कृति और छात्रों की पीढ़ियों पर इसके गहन प्रभाव को दर्शाता है। पुस्तक में महान अभिनेता अमिताभ बच्चन का एक प्रस्तावना शामिल है, जिनके विचार संस्थान के शानदार इतिहास की कथा में जुड़ते हैं। हरदीप पुरी ने पुस्तक में शामिल विविध योगदानों के बारे में जानकारी साझा की, जिसमें बताया गया कि कैसे विभिन्न निबंधकारों ने दिल्ली विश्वविद्यालय में अपने अनुभवों पर वास्तविक लेकिन विद्वत्तापूर्ण दृष्टिकोण प्रदान किए। उन्होंने कहा कि ये निबंध सामूहिक रूप से पिछली शताब्दी में संस्थान की यात्रा का पता लगाते हैं, जो साहित्य, कानून और शासन सहित विभिन्न क्षेत्रों में नेताओं को पोषित करने में इसकी भूमिका को प्रदर्शित करते हैं।
उन्होंने प्रमुख साहित्यिक हस्तियों से लेकर प्रभावशाली नीति निर्माताओं तथा उल्लेखनीय पूर्व छात्रों की प्रेरक कहानियों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने लेखकों, पत्रकारों और कानूनी विशेषज्ञों के योगदान का उल्लेख किया, जिनमें से प्रत्येक ने अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास पर विश्वविद्यालय के प्रभाव पर अद्वितीय दृष्टिकोण प्रस्तुत किए। पुरी ने आगे घोषणा की कि पुस्तक की बिक्री से प्राप्त आय को धर्मार्थ कार्य के लिए निर्देशित किया जाएगा, जिससे पूर्व छात्रों और शुभचिंतकों को इस पहल का समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
चर्चा के दौरान लक्ष्मी पुरी ने बताया कि कैसे दिल्ली विश्वविद्यालय, विशेष रूप से लेडी श्री राम कॉलेज, नारीवाद और लैंगिक सशक्तीकरण का प्रतीक बन गया। उन्होंने बताया कि कैसे डीयू ने पितृसत्तात्मक मानदंडों को चुनौती देने और महिलाओं के बीच स्वतंत्र सोच को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एलएसआर के माहौल ने छात्रों (विशेष रूप से महिलाओं) को सामाजिक बाधाओं को तोड़ने, आधुनिकता को अपनाने और आत्मनिर्भरता की मजबूत भावना विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने यह भी बताया कि 1970 के दशक में डीयू नारीवाद की दूसरी लहर से कैसे प्रभावित था जो पूरे यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में फैल रही थी। सोशल मीडिया और त्वरित कनेक्टिविटी की अनुपस्थिति के बावजूद, लैंगिक समानता, महिला अधिकार और आत्म-सशक्तिकरण के विचार विश्वविद्यालय के स्थानों में व्याप्त थे, जिससे छात्रों के बीच बौद्धिक जागृति पैदा हुई। उन्होंने बताया कि किस तरह डीयू नारीवादी विचारों का केंद्र बन गया, समाज में महिलाओं की भूमिका को नए सिरे से परिभाषित किया और नेतृत्व के अवसरों के द्वार खोले, जो पहले दुर्गम थे।
संजीव सान्याल ने 1922 में डीयू की स्थापना और एक प्रमुख संस्थान बनने की इसकी यात्रा का ऐतिहासिक अवलोकन प्रदान किया।
राजन करंजावाला ने एसआरसीसी में अपने दिनों और छात्र राजनीति में अपनी सक्रिय भागीदारी को याद किया। उन्होंने आपातकाल के दौरान डीयू के उत्साहवर्धक माहौल पर विचार किया, जब छात्र सक्रियता ने सत्तावाद का विरोध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / दधिबल यादव