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Malegaon Blast Case: 2008 के मालेगांव विस्फोट पर आज आएगा फैसला

आज मुंबई की विशेष एनआईए अदालत 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में फैसला सुनाने जा रही है। इस मामले में पूर्व बीजेपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और अन्य आरोपी शामिल हैं। विस्फोट में 6 लोगों की मौत हुई थी और 101 लोग घायल हुए थे। यह मामला हिंदू कट्टरपंथियों को आरोपी बनाने वाला पहला आतंकी हमला था। जानें इस मामले की जटिलताएं और एनआईए की दलीलें।
 

Malegaon Blast Case: विशेष एनआईए अदालत का फैसला

Malegaon Blast Case: मुंबई की एक विशेष एनआईए अदालत आज 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाने वाली है. इस केस में पूर्व बीजेपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित कई आरोपी हैं. यह मामला देश के सबसे लंबे समय तक चलने वाले आतंकी मामलों में से एक है, जिसमें अभियुक्तों पर यूएपीए और अन्य आतंकी कानूनों के तहत मुकदमा चला.


मालेगांव धमाका: एक संक्षिप्त परिचय

यह धमाका महाराष्ट्र के नासिक जिले के मुस्लिम बहुल मालेगांव इलाके में 29 सितंबर 2008 को हुआ था. रमजान के पवित्र महीने में हुए इस हमले में 6 लोगों की मौत हो गई थी और 101 लोग घायल हुए थे. यह पहला मौका था जब किसी आतंकी हमले में हिंदू कट्टरपंथियों को आरोपी बनाया गया था.


2008 का मालेगांव धमाका: घटनाक्रम

29 सितंबर 2008 को मालेगांव के एक व्यस्त चौराहे पर एक मोटरसाइकिल में विस्फोटक लगाकर धमाका किया गया. यह इलाका मुस्लिम बहुल था और घटना रमजान के दौरान हुई थी. पुलिस को शक था कि हमले की टाइमिंग जानबूझकर चुनी गई ताकि धार्मिक तनाव भड़काया जा सके.


एटीएस की प्रारंभिक जांच

मामले की जांच पहले स्थानीय पुलिस कर रही थी, लेकिन बाद में इसे महाराष्ट्र एटीएस को सौंपा गया. जांच में पाया गया कि विस्फोटक एक LML फ्रीडम मोटरसाइकिल में लगाया गया था. मोटरसाइकिल का रजिस्ट्रेशन नंबर फर्जी था और इंजन व चेसिस नंबर मिटाए गए थे.


जब नंबरों को फॉरेंसिक लैब में दोबारा उकेरा गया, तो सामने आया कि यह बाइक प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम पर रजिस्टर्ड थी. इसके बाद 23 अक्टूबर 2008 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. पूछताछ के आधार पर कुल 11 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें कर्नल पुरोहित भी शामिल थे.


अभियुक्तों पर गंभीर आरोप

एटीएस ने जनवरी 2009 में चार्जशीट दाखिल की, जिसमें दावा किया गया कि सभी आरोपी अबिनव भारत नाम के संगठन से जुड़े थे. उन्होंने मुस्लिम आतंकवादियों द्वारा किए गए हमलों का बदला लेने के उद्देश्य से यह विस्फोट किया. इस चार्जशीट में आरोपियों पर महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) के तहत भी केस दर्ज किया गया.


एनआईए को सौंपी गई जांच

2011 में यह मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को ट्रांसफर कर दिया गया. इसके बाद आरोपियों ने अदालत में याचिका दायर कर MCOCA धाराओं को चुनौती दी.


2016 में एनआईए ने इस मामले में पूरक चार्जशीट दाखिल की, जिसमें MCOCA की धाराओं को हटाने की सिफारिश की गई. एनआईए ने कहा कि एटीएस ने यह धाराएं जल्दबाजी में लगाई थीं और प्रज्ञा सिंह ठाकुर के खिलाफ ठोस सबूत नहीं हैं.


हालांकि, अदालत ने कहा कि MCOCA लागू नहीं होगा लेकिन प्रज्ञा ठाकुर समेत सात आरोपियों के खिलाफ UAPA, IPC, और Explosive Substances Act, 1908 के तहत मुकदमा चलेगा.


एनआईए का अंतिम तर्क

एनआईए ने अपनी अंतिम दलीलों में कहा कि यह धमाका मुस्लिम समुदाय को आतंकित करने, जरूरी सेवाओं को बाधित करने और सांप्रदायिक तनाव फैलाने के मकसद से किया गया था. अदालत ने अप्रैल 2025 में इस केस की सुनवाई पूरी कर ली थी और अब 31 जुलाई को इसका फैसला सुनाया जाएगा.


मुख्य आरोपी जिन पर ट्रायल चला

  • प्रज्ञा सिंह ठाकुर

  • लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित

  • रमेश उपाध्याय

  • समीर कुलकर्णी

  • सुधाकर ओंकारनाथ चतुर्वेदी

  • अजय रहीरकर

  • सुधाकर द्विवेदी