PM मोदी की त्रिनिदाद यात्रा: सोहरी पत्ते पर परोसा गया भोजन और इसका सांस्कृतिक महत्व
प्रधानमंत्री मोदी का त्रिनिदाद दौरा
PM Modi Trinidad Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जुलाई 2025 में त्रिनिदाद और टोबैगो की आधिकारिक यात्रा के दौरान एक विशेष रात्रिभोज में भाग लिया। इस डिनर को खास बनाते हुए भोजन को पारंपरिक, बड़े और चमकदार हरे सोहरी पत्तों पर परोसा गया। पीएम मोदी ने इस अनुभव को सोशल मीडिया पर साझा करते हुए बताया कि यह पत्ता त्रिनिदाद के भारतीय मूल के लोगों के लिए गहरा सांस्कृतिक महत्व रखता है।
सोहरी पत्ते की परंपरा
यह छोटा लेकिन भावनात्मक दृश्य त्रिनिदाद की इंडो-कैरेबियन संस्कृति को दर्शाता है, जहां आज भी भोजन परोसने के लिए इन पत्तों का उपयोग एक परंपरा के रूप में जीवित है। यह परंपरा न केवल प्रकृति के प्रति जुड़ाव को दर्शाती है, बल्कि भारत से आए पूर्वजों की यादों को भी संजोती है।
सोहरी पत्ते का पौधीय और ऐतिहासिक परिचय
सोहरी पत्ता का पौधीय और ऐतिहासिक परिचय
सोहरी पत्ता कैलाथिया लुटिया पौधे से प्राप्त होता है, जो एक उष्णकटिबंधीय पौधा है और अदरक की प्रजातियों से संबंधित है। इसे आमतौर पर बिजाओ या सिगार प्लांट भी कहा जाता है। यह पौधा कैरेबियाई, मध्य और दक्षिण अमेरिका के गर्म और आर्द्र इलाकों में पाया जाता है और इसकी ऊंचाई लगभग 10 फीट तक पहुंच सकती है।
इसके चौड़े और मोमी सतह वाले पत्ते, जिनकी लंबाई एक मीटर से अधिक हो सकती है, भोजन परोसने के लिए आदर्श माने जाते हैं। खासकर गर्म और तैलीय व्यंजनों के लिए, ये पत्ते बिना टूटे या रिसे काफी मजबूत साबित होते हैं.
सोहरी पत्ते का उपयोग
त्रिनिदाद में भोजन परोसने में सोहारी पत्ते का इस्तेमाल
"सोहारी" शब्द की जड़ें भोजपुरी भाषा में हैं, जिसका अर्थ होता है "देवताओं का भोजन"। यह शब्द एक प्रकार की घी में बसी हुई रोटी (फ्लैटब्रेड) को संदर्भित करता था, जिसे धार्मिक अनुष्ठानों में पुजारियों को अर्पित किया जाता था।
धीरे-धीरे उस पत्ते को भी "सोहारी पत्ता" कहा जाने लगा, जिस पर यह रोटी और अन्य प्रसाद परोसे जाते थे। वर्तमान में, त्रिनिदाद में यह पत्ता धार्मिक आयोजनों, शादियों, सामूहिक भोजों और दिवाली जैसे पर्वों में बड़े पैमाने पर उपयोग होता है। एक संपूर्ण पारंपरिक थाली जिसमें चावल, चना, सब्ज़ियां, मिठाई आदि होते हैं एक ही सोहारी पत्ते पर परोसी जाती है.
सोहारी पत्ते का सांस्कृतिक महत्व
सोहारी पत्ते का सांस्कृतिक महत्व
सोहारी पत्ते पर भोजन करना सिर्फ एक व्यावहारिक समाधान नहीं, बल्कि इतिहास से जुड़ाव का प्रतीक है। इंडो-त्रिनिदादियनों के लिए यह पत्ता भारत में बसे पूर्वजों की स्मृतियों से जुड़ा है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसे एक "भावनात्मक और सांस्कृतिक सेतु" बताया जो भारत और कैरेबियाई द्वीपों की संस्कृति को जोड़ता है.
सोहरी पत्ता यहाँ सिर्फ एक प्लेट नहीं, बल्कि एक परंपरा है जो भारतीय मूल के लोगों की पहचान और उनकी विरासत को सम्मान देती है। यह परंपरा इस बात का प्रमाण है कि भारत की सांस्कृतिक जड़ें कितनी दूर तक फैली हैं और कैसे उन्होंने विदेशों में भी अपनी छाप छोड़ी है.
सोहारी पत्ते से जुड़ी कुछ खास बातें
सोहारी पत्ते से जुड़ी कुछ खास बातें
अर्थ: "सोहरी" शब्द भोजपुरी से आया है, जिसका अर्थ है "देवताओं का भोजन".
संस्कृतिक उपयोग: इंडो-त्रिनिदादियाई हिंदू समाज में 100 वर्षों से अधिक समय से धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में इसका उपयोग हो रहा है.
पौधीय स्रोत: यह Calathea lutea नामक पौधे से प्राप्त होता है, जो कैरेबियन का स्थानीय पौधा है और अपने मजबूत, चौड़े पत्तों के लिए जाना जाता है.
स्थायित्व और प्रकृति-मैत्री: यह परंपरा न केवल पर्यावरण-संवेदनशील है, बल्कि प्लास्टिक-फ्री भोजन संस्कृति का उदाहरण भी है.