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RSS के शताब्दी समारोह में मोहन भागवत का महत्वपूर्ण संबोधन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी वर्ष समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदू समाज की परिभाषा और संघ के उद्देश्यों पर महत्वपूर्ण विचार साझा किए। उन्होंने बताया कि संघ का मुख्य कार्य समाज को एकजुट करना है और यह किसी पार्टी या नेता का प्रचार नहीं है। भागवत ने भारत की पहचान और राष्ट्रहित पर भी जोर दिया। इस समारोह में देशभर से कई प्रमुख हस्तियां उपस्थित थीं। जानें उनके विचार और संघ के सिद्धांतों के बारे में।
 

RSS के शताब्दी वर्ष समारोह की शुरुआत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी वर्ष समारोह का उद्घाटन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हिंदू वह है जो सभी को एक साथ लेकर चलता है, केवल एक भगवान को मानने वाला हिंदू नहीं हो सकता। भागवत ने यह भी बताया कि संघ का अस्तित्व भारत के कारण है और संघ के बारे में चर्चा तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए, न कि धारणाओं पर। उन्होंने समाज सुधार, एकता और राष्ट्रहित को संघ का मुख्य उद्देश्य बताया। भागवत ने कहा कि संघ किसी के सामने हाथ नहीं फैलाता।


संघ के सिद्धांतों पर प्रकाश

दिल्ली में आयोजित RSS के तीन दिवसीय शताब्दी समारोह के पहले दिन, मोहन भागवत ने व्याख्यानमाला को संबोधित किया। इस अवसर पर देशभर से कई प्रमुख हस्तियां उपस्थित थीं। भागवत ने संघ के सिद्धांतों और उद्देश्यों पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि समाज को एकजुट करना संघ का मूल मंत्र है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि संघ को चलाने के लिए किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ता। संघ स्वयंसेवकों की तपस्या और निष्ठा पर आधारित है।


हिंदू की परिभाषा पर जोर

अपने संबोधन में भागवत ने हिंदू समाज की परिभाषा पर जोर दिया। उन्होंने कहा, 'हिंदू वह है जिसकी परंपरा सभी को साथ लेकर चलने की है।' भागवत ने बताया कि संघ के गठन के समय से ही यह तय किया गया था कि पूरे हिंदू समाज को संगठित करना है। यही संघ का मुख्य कार्य है, न कि किसी पार्टी या नेता का प्रचार।


समाज परिवर्तन का लक्ष्य

भागवत ने यह भी स्पष्ट किया कि राजनीति, पार्टी या नेता समाज को बदलने में सहायक हो सकते हैं, लेकिन संघ का मुख्य कार्य समाज परिवर्तन का है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र की उन्नति के लिए ऐसे गुण विकसित करने होंगे जो समाज को संगठित और मजबूत बनाएं। भागवत के अनुसार, जब समाज एकजुट होता है, तो राष्ट्र अपने आप प्रगति करता है।


भारत की पहचान

भागवत ने कहा कि भारत के बिना संघ की कोई पहचान नहीं है। उन्होंने कहा, 'भारत है इसलिए संघ है। हमारे लिए देश सर्वोपरि है, इसलिए हम भारत माता की जय कहते हैं।' उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि संघ का हर कदम राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर उठाया जाता है। समाज और राष्ट्र की उन्नति के लिए संघ हमेशा तत्पर रहा है और आगे भी रहेगा।