दंतेवाड़ा शक्तिपीठ में दीपावली में मां लक्ष्मी के रूप में पूजी जाती माता दंतेश्वरी
मंदिर के सामने गरूड़ स्तंभ स्थापित है, मां दंतेश्वरी यहां देवी नारायणी स्वरूप में विराजित हैं
दंतेवाड़ा, 24 अक्टूबर (हि स)। छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी शक्तिपीठ संभवत: देश का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां देवी दंतेश्वरी नवरात्रि और बाकी दिनों में शक्ति स्वरूपा दुर्गा के रूप में पूजी जाती हैं, तो दीपावली पर उनका मां लक्ष्मी स्वरूप में पूजन होता है। यह पूजन एक दिन नहीं बल्कि पूरे 9 दिनों तक चलता है, जिसे तुलसी पानी विधान कहा जाता है।
मां दंतेश्वरी शक्तिपीठ के पुजारी लोकेंद्र नाथ जिया के अनुसार इस शक्तिपीठ में मांईजी, देवी नारायणी स्वरूप में विराजित हैं। यही वजह है कि यहां पर मंदिर के सामने गरूड़ स्तंभ स्थापित हैं, जो अन्यत्र किसी भी देवी मंदिर में नहीं मिलता है। मां दंतेश्वरी को आज दीपावली के अवसर पर सात प्रकार की जड़ी-बूटी के जल से स्नान कराकर पूजा-अर्चना की जाती है। इस परंपरा को कतियार परिवार के सदस्य शताब्दियाें से निभा रहे हैं। माना जाता है कि इस स्नान-विधि से देवी का शुद्धिकरण होता है, और आज के पर्व की शुरुआत में विशेष पूजा-कार्य किया जाएगा।
दरअसल, दिवाली से ठीक एक दिन पहले दंतेवाड़ा जिले के कतियार परिवार के लोग जंगल से जड़ी बूटी लेकर आए। इस जड़ी बूटी का नाम नहीं बताया जाता और न ही इसकी पहचान बताई जाती है। जिसकी पहचान सिर्फ कतियार परिवार के सदस्य ही कर पाते हैं। जिस सात जड़ी बूटी से स्नान करवाया जाता है, इसकी फोटो-वीडियो बनाने की भी अनुमति नहीं होती। यहां तक कि जिस जगह इसे उबाला जाता है, वहां भी किसी दूसरे को प्रवेश करने नहीं दिया जाता है। कतियार परिवार के शिवचंद कतियार का कहना है कि यह परंपरागत रस्में हैं, जो पुरखों के समय से चली आ रही हैं, जिसे हम निभा रहे हैं। इसलिए गोपनीयता बनाए रखते हैं।
शक्तिपीठ में महामंडप में प्रवेश से पहले भैरवमंडप के पीछे एक ही शिलाखंड के एक तरफ माता गजलक्ष्मी और दूसरी तरफ भैरव उत्कीर्ण की दुर्लभ प्रतिमा स्थापित है, जिसकी विशेष पूजा दीपावली में की जाती है। डेढ़ फीट चौड़ी, एक फीट मोटी और 2 फीट ऊंची प्रतिमा विशिष्ट है, आम तौर पर प्रतिमा शिलाखंड के एक तरफ ही उकेरी जाती है। पुजारी लोकेंद्र नाथ की मानें तो देवी तक बात पहुंचाने के लिए भैरव को उपयुक्त संदेशवाहक की मान्यता मिली हुई है, इसी वजह से अगले हिस्से में भैरव और पिछले हिस्से में गजलक्ष्मी अंकित हैं।
मंदिर के पुजारी लोकेंद्र नाथ जिया ने कहा कि देवी-देवताओं को स्नान करवाने के बाद जो जड़ी बूटी पानी बचता है उसे भक्तों को भी दे दिया जाता है। मान्यता है कि यदि किसी को कोई रोग हो या फिर कोई कष्ट हो तो वो भी इससे दूर हो जाता है। उन्हाेने बताया कि नवरात्र से लेकर नए वर्ष और किसी भी त्योहार के समय यहां परंपरा अनुसार अलग-अलग पूजा विधान किए जाने की परंपरा है।
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हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे