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बस्तर दशहरा के निर्विघ्न पूर्ण होने के लिए काछन गादी पूजा विधान रविवार को

 




जगदलपुर, 20 सितंबर (हि.स.)। बस्तर दशहरा में इस वर्ष काछन गादी पूजा विधान 21 सितंबर रविवार को संपन्न होगा । परंपरानुसार पनका जाति की कुंवारी कन्या बेल के कांटे पर काछनदेवी के रूप में झूलती हुई राजपरिवार के सदस्यों को बस्तर दशहरा के निविघ्र संपन्नता की अनुमति प्रदान करती है। पनका जाति की कुंवारी कन्या पीहू को आमंत्रित किया गया है, पीहू लगातार तीसरी बार अपने में काछन देवी को धारण करेंगी। इस कर्मकांड को लेकर पीहू काफी उत्साहित हैं। काछन देवी बर्नी नाबालिग कन्या को देवी स्वरूपा मानकर बेल के कांटों के झूले पर झुलाया जाता है। इस वर्ष पीहू कांटों से भरे झूले पर झूलकर बस्तर दशहरा के निर्विघ्न पूर्ण होने के लिए अनुमति देंगी।

बस्तर दशहरा पर्व के दौरान भंगाराम चौक स्थित काछन गुड़ी में एक कन्या को काछन देवी के रूप में श्रृंगारित कर कांटे के झूले में झुलाया जाता है। इस वर्ष काछन पूजा विधान 21 सितंबर की शाम को संपन्न होगा। बीते 20 वर्षों में उर्मिला, कुंती, विशाखा और अनुराधा काछन देवी बन चुकी हैं, जबकि पिछले दो वर्षों से पीहू दास यह दायित्व निभा रही हैं।

रियासत कालीन एतिहासिक बस्तर दशहरा हरियाली अमावस्या तिथि पर पाट जात्रा पूजा विधान के साथ इसकी शुरूआत हो जाती है। पाटजात्रा के बाद डेरी गड़ाई पुजा विधान एक प्रमुख रस्म है, जिसके बाद दुमंजिला विशाल काष्ठ रथों का निर्माण कार्य प्रारंभ हो जाता है, वर्तमान में रथ निर्माण जारी है। डेरी गड़ाई के बाद नवरात्रि से पहले आश्विन मास की अमावस्या के दिन काछिनगादी पूजा विधान में बस्तर दशहरा के निर्विघ्न पूर्ण होने की अनुमति बस्तर राजपरिवार को मिलने के बाद नवरात्र के कलश स्थापना, जोगी बिठाई रस्म एवं बस्तर दशहरा का मुख्य आकर्षण रथ परिचालन प्रारंभ हो जायेगा। इसके लिए काछनगुड़ी में एक सप्ताह पहले से इसकी प्रक्रिया पूरा किया जा रहा है। काछिनदेवी से स्वीकृति मिलने पर ही बस्तर दशहरा धूम-धाम के साथ आरंभ हो जायेगा है।

काछिनगादी का अर्थ है काछिन देवी को गद्दी देना। काछिन देवी की गद्दी कांटेदार होती है। कांटेदार झुले की गद्दी पर काछिनदेवी विराजित होती है। काछिनदेवी को रण देवी भी कहते है। काछिनदेवी बस्तर अंचल के मिरगानों (हरिजन)की देवी है। बस्तर महाराजा के द्वारा बस्तर दशहरा से पहले आश्विन अमावस्या को काछिन देवी की अनुमति से ही दशहरा प्रारंभ करने की प्रथा चली आ रही है।

काछनगुड़ी के पुजारी गणेश ने बताया कि इस रस्म की कन्या पीहू बेल के कांटों के झूले पर लेट कर बस्तर दशहरा के होने संपन्न होने की अनुमति प्रदान करेगी। काछनगुड़ी में पूजा पाठ कर पीहू को तैयार किया जा रहा है। पुजारी ने दिन बताया कि पितृपक्ष आमावस्या तिथि को काछनगुड़ी में काछनगादी पूजा विधान होगा। पुजारी गणेश ने बताया कि इससे पूर्व कांडा बारा की रस्म में काछन देवी की पूजा संपन्न की गई है। नंदिनी काछनगादी पूजा विधान को पूरा करे इसके लिए ही पूजा पाठ किया गया। पुजारी ने बताया कि पीहू इस दाैरान केवल फलाहार में रहकर इससे पूर्व की प्रक्रिया को पूरा कर रही है।

हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे