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आस्था का केंद्र है महाभारत कालीन भवानी मठ मंदिर, नवरात्र में होती है विशेष पूजा

 






चतरा, 22 सितंबर (हि.स.)। झारखंड में चतरा और लातेहार जिला के सीमांत क्षेत्र के सिमरिया प्रखंड में स्थित भवानी मठ मंदिर इन दिनों आस्था और भक्ति के रंग में रंगा हुआ है। शारदीय नवरात्रि पर यहां बड़ी संख्या में भक्त आ रहे हैं और माता के दर्शन-पूजन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं। मनोरम पहाड़ियों के बीच बसे इस मंदिर में श्रद्धालु न सिर्फ माता के दर्शन के लिए आते हैं, बल्कि वे यहां आकर प्रकृति की शांति का भी आनंद लेते हैं।

स्थानीय लोगों में ऐसी घारणा है कि यहां विराजमान मां भवानी सबकी मनोकामना पूर्ण करतीं हैं। यही कारण है कि यह मंदिर भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। इस मंदिर में सालों भर भक्तों का आगमन होता है। भक्त यहां श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना करते हैं और माता से सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। पर्व त्योहारों पर यहां की रौनक देखते ही बनती है। नवरात्र पर तो यहां भक्ति और आस्था का ज्वार उमड़ता है। माता के भक्तों का प्रत्येक शुभ कार्य भवानी मठ में मत्था टेक कर शुरू होता है।

मंदिर के पूर्वी छोर पर जंगल के बीच भीम गुफा है। गुफा के अंदर बना रॉक पेटिंग जिसे कोहबरा स्थान कहते हैं। गुफा में आसपास के ग्रामीण सामूहिक रूप से पूजा करते हैं। मंदिर में काले पत्थर की मां भवानी की एक दुर्लभ प्रतिमा है। मंदिर परिसर में कई अन्य देवी देवताओं की भी प्रतिमा भी है।

भवानी मठ एक प्राचीन मंदिर है। मंदिर का इतिहास भी लगभग पांच हजार साल प्राचीन है। यह मंदिर महाभारत काल से जुड़ा है। यहां आसपास के क्षेत्रों में कई स्थानों में बिखरी प्राचीन प्रतिमाएं इतिहास की कहानी बता रही हैं। प्रकृति की हरी भरी वादियों में बना मंदिर साधकों के लिए वर्षों से पसंदीदा रहा है।

ग्रामीणों की ओर से प्राचीन मंदिर के बाहर एक भव्य मंदिर का निर्माण भी करवाया गया है। यहां प्रतिदिन श्रद्धालुओं की कतार लगती है। आस-पास के गांवों में किसी भी प्रकार का शुभ या मांगलिक कार्य की शुरूआत यहां पूजा-पाठ के बाद ही शुरू होता है। यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए मंदिर प्रबंधन समिति की ओर से कई सुलभ व्‍यवस्थाएं की गई हैं। मंदिर का प्राकृतिक सौंदर्य और शांत वातावरण इसे श्रद्धालुओं के लिए और भी खास बनाता है।

नवरात्र में यहां कलश स्थापित कर माता की पूजा-अर्चना की जाती है। पूरे नौ दिनों तक दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के लिए यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। श्रद्धालु पूरे भक्ति भाव के साथ माता के दरबार में पहुंचते हैं और अपनी-अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए माता की उपासना करते हैं। इस बार भी यहां शारदीय नवरात्र को लेकर विशेष तैयारी की गई है। नवरात्र पूजन को लेकर मंदिर को आकर्षक रूप से सजाया गया है। कलश स्थापना के साथ यहां नवरात्र की आराधना शुरू हो गई है।

पांच हजार वर्ष पुराने मेगालिथ श्रृंखलाएं देती हैं पाषाणकालीन महत्व का प्रमाण

यहां 5000 वर्ष पुराने मेगालिथ, रॉक पेंटिंग और कई स्थानों में प्राचीन मंदिर के अवशेष अदभुत हैं। जो इस मठ मंदिर की प्राचीन महत्ता को रेखांकित करते हैं। मंदिर परिसर में बिखरे पड़े मृदभांड के टुकड़े और पत्थरों का कलात्मक अवशेष यहां किसी प्राचीन सभ्यता के दबे होने का प्रमाण देते हैं। इसके अलावा यहां के अभयारण्य में एक पाषाण काल की गुफा भी मौजूद है। जिसे आदिमानव की ओर से निर्मित बताया जाता है। यह गुफा काफी रहस्यमय है।

यह स्थल न केवल धार्मिक, बल्कि पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। भवानी मठ की वादियां यहां आने वाले लोगों का मन मोह लेती है। उन्मत्त खड़े पहाड़, हरे-भरे वृक्ष, कल-कल करता झरना, पक्षियों का उन्मुक्त उड़ान और उनके बीच स्थित मां भवानी का सुंदर सजीला मंदिर। सच प्रकृति ने यहां दिल खोलकर अपनी सुंदरता लुटाई है। पहाड़ी की ऊंची चोटी से झरना कुछ इस कदर गिरता है मानो वह माता का चरण पखार रहा हो। मठ के विशाल वादियों का मनभावन नजारा घंटों निहारने का जी चाहता है।

झारखंड कला संस्कृति और पुरातत्व विभाग के पूर्व सहायक निदेशक एवं प्रसिद्ध पुरातत्वविद डॉ. हरेन्द्र सिन्‍हा ने बताया कि भवानी मठ मंदिर अति प्राचीन है। एक ही पत्थर को तराश कर मंदिर बनाया गया है। यह क्षेत्र वर्षों से आस्था और साधना का केंद्र रहा है। यह मंदिर महाभारत काल से है।

मजदूर नेता बिनोद बिहारी पासवान और भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) के नेता अमित साहू ने बताया कि इस स्थान के प्रति ग्रामीणों की अटूट आस्था है। जिला प्रशासन ने भी इस स्थान को धार्मिक पर्यटन की सूची में शामिल किया है।---------------

हिन्दुस्थान समाचार / जितेन्द्र तिवारी