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बुंदेली परंपरा आज भी जिंदा, गांवों में गूंजे लोकगीत व ढोलक की थाप

 




हमीरपुर में लोक प्रसिद्ध झिंझिया नृत्य का भव्य आयोजन

हमीरपुर, 7 अक्टूबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड की लोक संस्कृति का अभिन्न अंग झिंझिया नृत्य एक बार फिर जनपद हमीरपुर के गांवों में पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। यह पारंपरिक नृत्य बुंदेली लोकजीवन की आस्था, उल्लास और संस्कृति का जीवंत प्रतीक माना जाता है।

जनपद की सरीला, राठ, मौदहा और सदर क्षेत्र के ग्राम पंचायतों में झिंझिया नृत्य का भव्य आयोजन हो रहा है। लोकमान्यता है कि इसी रात्रि अमृत की वर्षा होती है, और इसी शुभ अवसर पर गांवों में झिंझिया उत्सव धूमधाम से निकाली जाती है। गांवों की गलियों में लोकगीतों की गूंज, ढोलक की थाप, डीजे की धुन और सोंग बनकर झूमते युवक-युवतियों की टोली इस परंपरा को जीवन्त बना देती है। महिलाएं पारंपरिक परिधानों में लोकगीत गाती हैं तो पुरुष सोंग बनकर विभिन्न रूपों में नृत्य करते हैं। राठ तहसील क्षेत्र के ग्राम औड़ेरा, बहगांव सहित सरीला क्षेत्र के ग्राम पवई आदि गांव में इस बार झिंझिया नृत्य का आयोजन विशेष आकर्षण का केंद्र बना रहा। यहां ग्रामीणों ने पारंपरिक पोशाकों और गीत-संगीत के माध्यम से बुंदेलखंड की सांस्कृतिक विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास किया।

स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि झिंझिया नृत्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि लोक आस्था, एकता और समृद्ध परंपरा का प्रतीक है। हालांकि, आधुनिकता और बदलते सामाजिक परिवेश के कारण युवाओं में इस लोकनृत्य के प्रति उत्साह कुछ कम हुआ है, फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी जीवंतता आज भी बरकरार है। झिंझिया नृत्य बुंदेलखंड की मिट्टी से जुड़ी उस परंपरा का हिस्सा है, जो लोगों को अपनी संस्कृति, आस्था और लोकधारा से जोड़ती है। जहां ढोलक की थाप और झिंझिया के गीत गूंजते हैं, वहीं बुंदेली संस्कृति आज भी सांस लेती है।

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हिन्दुस्थान समाचार / पंकज मिश्रा