दमोह-मुल्तानी मिट्टी को सीधे टक्कर देती दमोह के धुवा तला की मिट्टी
धुवा तला की मिट्टी का उपयोग शेंपू,मंजन एवं रोगों के उपचार
दमोह, 21 जून (हि.स.) मध्य प्रदेश के दमोह नगर के समीप स्थित अति प्राचीन धुवा तालाब जिसे स्थानीय भाषा में धुवा तला के नाम से पहचाना जाता है उसकी मिट्टी मुलतानी मिट्टी को टक्कर दे रही है। सैकड़ों वर्ष प्राचीन इस तालाब का पूर्व में लोग पानी पीने के लिये इस्तेमाल करते थे और गर्मी के समय जब पानी कम हो जाता था तो उसकी मिट्टी को खोदकर रख लेते थे। यह क्रम जो पहले रहा, यहां देखने में आ रहा है कि वह आज भी जारी है। जिले के समीप के कई जिलों के लोग इस मिट्टी को अभी भी ले जाते हैं।
दरअसल काले रंग की इस मिट्टी की खासियत यह है कि इसका उपयोग लोग सिर के बाल धोने एवं नहाने में करते हैं जो एक प्राकृतिक शैंपू की तरह कार्य करता है। दांत साफ करने से लेकर छोटे-मोटे फोड़े-फुंसी में भी इसका उपयोग किया जाता रहा है। खास बात यह है कि यह सरोवर काफी बड़ा होने के बाद भी एक निश्चित क्षेत्र में यह मिट्टी मिलती है। आसपास रहने वाले लोग बताते हैं कि पूर्व में एक घाट पर धोबी कपड़े धोने आते थे और उसी समय से इसको धुवा तला कहने लगे। यह काले रंग की मिट्टी जिसमें कोई कंकड़-पत्थर नहीं होता, एकदम पानी में भिगोेने पर यह मुलायम हो जाती है।
वयोवृद्ध धन्नु पटेल से जब इस संबध में चर्चा की तो वह कहते हैं कि यह काफी पुराना तालाब है और यहां मिट्टी लेने के लिये पूर्व में हजारों लोग आते थे अब कम आते हैं लेकिन कुछ समय से संख्या फिर बढ़ने लगी है। सिर पर मिट्टी से भरी बोरी ले जा रही ममता पटेल से जब चर्चा की तो वह कहती हैं कि सारे शेंपू साबुन इसके सामने फेल हैं।
दूसरी ओर हरिदास पटेल ने बताया कि यह तालाब काफी बड़ा और पुराना है लेकिन वर्तमान में अनदेखी और अतिक्रमण हो जाने के कारण स्थित खराब हो गयी है। वह कहते हैं कि इसके बावजूद भी लेकिन मिट्टी लेने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। आयुर्वेद के जानकारों की माने तो इस प्रकार की मिट्टी का उपयोग का महत्व आयुर्वेद के ग्रन्थों में मिलता है। आज प्राकृतिक चिकित्सा में इसका उपयोग किया जाता है। यह मिट्टी प्रकृति का शैंपू, मंजन, बीमारियों को दूर करने में उपयोग होने वाली अदभुत चमत्कारी मिट्टी है।
उधर, सनातन हिन्दू धर्मावलंबी शिवलिंग निर्माण के लिये भी इसका उपयोग करते हैं। प्रकृति का अनमोल रत्न के रूप में काली मिट्टी के रूप में उपहार को देने वाला यह सरोवर हालांकि वर्तमान में अपने अस्तित्व को बचाने के लिये जद्दोजहद कर रहा है। जनप्रतिनिधि एवं प्रशासन की अनदेखी के चलते इसका आकार और गहराई सिमटने लगी है, जिसको संरक्षित और सवंर्धित करने की बड़ी आवश्यकता वर्तमान में महसूस होती है। अब देखना यह है कि मध्यप्रदेश की सरकार इस की कब सुध लेती है और दमोह जिले का प्रशासन पुन: इस तालाब के संरक्षण के लिए सामने आता है! फिलहाल इसके लिए समय का इंतजार है।
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हिन्दुस्थान समाचार / हंसा वैष्णव