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(साक्षात्कार) बांग्लादेश में दुर्गा पूजा : बदलते राजनीतिक हालात में बढ़ी चुनौतियां : मनींद्र कुमार नाथ

 




देओपाड़ा की कुम्हारपाड़ा से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक पूजा आयोजन का नेतृत्व करने वाले मनींद्र कुमार नाथ से विशेष बातचीत

ढाका, 29 सितम्बर (हि.स.)।नवरात्र के समय पूरा देश देवी दुर्गा की आराधना में लीन है। पश्चिम बंगाल में यह एक सांस्कृतिक महोत्सव के तौर पर मनाया जा रहा है। इसी तरह से बांग्लादेश में रहने वाला हिंदू समुदाय देवी दुर्गा की आराधना उतनी ही भक्ति भाव से करता है। शक्ति आराधना को लेकर हिन्दुस्थान समाचार ने बांग्लादेश पूजा उद्यापन परिषद के उपाध्यक्ष मनींद्र कुमार नाथ से बात की है। वे बांग्लादेश हिंदू बौद्ध क्रिश्चियन ऐक्य परिषद के कार्यवाहक महासचिव भी हैं। पेश है उनसे बातचीत के खास अंश।

प्रश्न: आपकी पूजा से जुड़ी शुरुआती स्मृतियां कैसी रही हैं?

उत्तर: मेरा जन्म 20 मार्च 1950 को पूर्वी पाकिस्तान के लक्ष्मीपुर जिले के पांचपाड़ा गांव में हुआ। पूजा हमारे पड़ोस के देओपाड़ा गांव में होती थी, जहां कुम्हारपाड़ा था। पूरे परिवार के लोग वहां धूमधाम से पहुंचते थे। पूजा के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते थे, जिनमें मैं भी भाग लेता था। जीवन के पहले दो दशक की सबसे गहरी स्मृतियां उसी पूजा से जुड़ी हैं।

प्रश्न: आगे चलकर जब आप पढ़ाई और नौकरी के सिलसिले में बाहर गए, तब पूजा का अनुभव कैसा रहा?

उत्तर: नोआखाली के चौमानी कॉलेज में अध्यापन शुरू करने के बाद पूजा का दायरा और बड़ा हुआ। वहां पोर्ट इलाके के पास, रामठाकुर की समाधि के नजदीक कई पूजा होती थीं। वे दृश्य आज भी आंखों के सामने तैरते हैं।

प्रश्न: ढाका आने के बाद आपका जुड़ाव किस तरह गहरा हुआ?

उत्तर: 1973 में जब मैं आगे की पढ़ाई के लिए ढाका आया तो यहां भी पूजा में शामिल हो गया। 1978 में महानगर सर्वजनीन पूजा समिति बनी, जिसका दफ्तर ढाकेश्वरी मंदिर में था। 1988 से मैं उससे गहराई से जुड़ गया। 2004 में महासचिव और 2009-10 में अध्यक्ष रहा। अब सलाहकार हूं। जब मैंने शुरुआत की थी, तब ढाका के 40 थानों में करीब 200 पूजा होती थीं, आज वह संख्या बढ़कर 258 हो गई है।

प्रश्न: आपने राष्ट्रीय स्तर पर भी कई भूमिकाएं निभाईं। उसके बारे में बताएं।

उत्तर: 1979 में ‘बांग्लादेश हिंदू बौद्ध क्रिश्चियन ऐक्य परिषद’ बनी। लंबे समय तक कार्यवाहक महासचिव के रूप में पूजा प्रबंधन का बड़ा हिस्सा संभाला। 1982 में ‘बांग्लादेश पूजा उद्यापन परिषद’ बनी, जिसमें मैं 2011-12 में महासचिव और अब उपाध्यक्ष हूं। इस बार पूरे देश में लगभग 33 हजार 300 पूजा का संचालन हमारी जिम्मेदारी है।

प्रश्न: क्या बदलते राजनीतिक हालातों ने कभी पूजा को प्रभावित किया?

उत्तर: राजनीतिक दबाव और हालातों की वजह से चुनौतियां जरूर आईं, लेकिन पूजा की संख्या कभी कम नहीं हुई। उल्टा, हर साल बढ़ती ही गई।

प्रश्न: इतनी व्यस्तताओं के बीच आपका मन कहां लौटता है?

उत्तर: आज भी जब व्यस्तता बहुत बढ़ जाती है तो मन बार-बार देओपाड़ा की कुम्हारपाड़ा में लौट जाता है। वहां के प्रतिमाशिल्पियों, उनकी कारीगरी और मिट्टी की खुशबू में पूजा की असली आत्मा बसती है।

हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर