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पूर्णिया के झंडा चौक पर 14 अगस्त की मध्य रात्री काे फहराया जाता है तिरंगा, 79 साल बाद भी नहीं मिला राजकीय दर्जा

 




पूर्णिया, 14 अगस्त (हि.स.)। पूर्णिया का झंडा चौक सिर्फ एक ट्रैफिक प्वॉइंट नहीं, बल्कि आज़ादी के इतिहास का एक जीवंत साक्षी है। यहां हर साल 14 अगस्त की रात 12 बजे देश का तिरंगा झंडा फहराया जाता है—वो भी 15 अगस्त की सुबह का इंतज़ार किए बिना। यह परंपरा 1947 से लगातार निभाई जा रही है, जब पूर्णिया के स्वतंत्रता सेनानियों ने आधी रात को ही अंग्रेजी हुकूमत के पतन और स्वतंत्र भारत के उदय का प्रतीक स्वरूप झंडा फहराया था।

झंडा चौक का नाम भी इसी ऐतिहासिक घटना से पड़ा। उस दौर में यहां एक बड़ा मंचन हुआ था, जिसमें हजारों लोग जमा हुए थे और ‘भारत माता की जय’ के नारों से पूरा इलाका गूंज उठा था। स्वतंत्रता सेनानी श्यामलाल अग्रवाल, रघुनंदन प्रसाद सिन्हा, और मौलवी अब्दुल वली जैसे नाम इस परंपरा के आरंभिक नायकों में गिने जाते हैं। दादा रामेश्वर सिंह, राम रतन साह ,शमशुल हक , इत्यादि झंडा फहराने वाले नायकों में से थे। रेडियो पर आजादी की घोषणा हुई और यह सभी लोग इस चौराहे पर जमा हुए और इन्होंने 12:00 बजे रात्रि 14 अगस्त को ही झंडा फहरा दिया।

हालांकि 79 साल बीत जाने के बाद भी इस ऐतिहासिक स्थल को राजकीय दर्जा नहीं मिल सका है। कई बार स्थानीय संगठनों और इतिहासकारों ने सरकार से मांग की है कि झंडा चौक को स्वतंत्रता संग्राम स्मारक के रूप में मान्यता दी जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियां इस गौरवगाथा को जान सकें।

आज भी, जब 14 अगस्त की आधी रात घड़ी की सुइयां 12 पर पहुंचती हैं, तो पूरा झंडा चौक रोशनी से जगमगा उठता है, बैंड-बाजे बजते हैं और लोग राष्ट्रीय गीत गाते हुए तिरंगे को सलामी देते हैं। यह न सिर्फ पूर्णिया का, बल्कि पूरे सीमांचल क्षेत्र का गर्व का क्षण होता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / नंदकिशोर सिंह