उत्तर बंगाल आपदा : मातमगाह बनी मॉडल विलेज, बाढ़ में बह गए लोगों के सपने
कोलकाता, 8 अक्टूबर (हि.स.)।
उत्तर बंगाल के नागराकाटा क्षेत्र में स्थित बामनडांगा की ‘मॉडल विलेज’ बारिश और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदा के चलते तहस नहस हो चुकी है। शनिवार रात आई बाढ़ और तेज जलधारा ने इस पूरे गांव को तबाह कर दिया। कभी जीवन से भरा यह इलाका अब कीचड़, टूटे घरों और बिखरे सामानों के बीच खामोशी में डूबा है।
गांव के निवासी घुरन मुंडा ने बताया, “अब उस तरफ मत जाइए, वहां कोई नहीं है। सब लोग फैक्टरी में हैं।” जहां कभी सौ से अधिक चाय श्रमिकों के घर थे, वहां अब सिर्फ विनाश के निशान हैं। मिट्टी और पानी से लथपथ घरों में अब केवल टूटी कुर्सियां, टेबल और बर्तन पड़े हैं। कुछ मवेशी भटकते दिखते हैं, लेकिन इंसान का नामोनिशान नहीं।
कारखाने में अब राहत शिविर जैसा माहौल है। वहां मौजूद लोग अब भी उस भयावह रात की दास्तान सुना रहे हैं, जब नदी अपने साथ नौ लोगों को बहा ले गई। 25 वर्षीय सागर मुंडा की आंखों के सामने ही उनकी पत्नी शिल्पा बह गई। सागर ने कहा, “एक हाथ से पेड़ पकड़ा था और दूसरे हाथ में साढ़े छह महीने की बच्ची थी। मैं चिल्लाया– कुछ पकड़ लो, लेकिन वो बह गई।”
सागर की तरह कई परिवारों ने अपनों को खो दिया। वृद्ध ओंराव ने रोते हुए कहा, “मेरे दो महीने के बच्चे को कब पानी बहा ले गया, पता ही नहीं चला। सरकार मुआवजा दे रही है, लेकिन बच्चा वापस कौन लाएगा?” उन्होंने बताया कि उनकी बेटी अलीशा का जन्म प्रमाण पत्र उन्होंने महीने भर पहले ही लिया था, लेकिन अब वो भी नदी में समा गया।
वहीं सुशीला लोहार अपनी बहन राधिका की याद में बेसुध बैठी थीं। 18 वर्षीय राधिका हाल ही में दुर्गापूजा के दौरान दीदी का हाथ पकड़कर नागराकाटा बाजार घूमी थी। अब उसकी लाश पोस्टमार्टम के बाद लौटने का इंतजार है।
चारों ओर पसरे सन्नाटे के बीच कारखाने की इमारत अब राहत केंद्र बन गई है। आदिवासी विकास परिषद के अमरदान बाकला ने कहा, “यहां तो अब श्राद्ध की तारीख भी बीत गई होगी। लेकिन कौन करेगा इन सबकी व्यवस्था, किसी को नहीं पता।”
बामनडांगा की यह त्रासदी सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं, बल्कि उन सैकड़ों चाय श्रमिक परिवारों का दर्द है, जिनके घर, बच्चे और सपने सब कुछ बाढ़ में बह गए।
दरअसल इस आपदा से राहत के लिए पश्चिम बंगाल सरकार और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मृतकों के परिजनों को पांच पांच लाख रुपये के वित्तीय मुआवजे का ऐलान किया है। इसके अलावा परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी का भी आश्वासन दिया है। ये तमाम प्रयास त्रासदी में हुए नुकसान के जख्मों पर मरहम लगाने की कोशिश जरूर है पर जिन लोगों ने अपनों को खो दिया है, उनके जख्म जिंदगी भर हरे रहेंगे।
हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर