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पीड़ित महिलाओं की मदद के लिए हरदम तत्पर वन स्टॉप सेंटर

 




- इंदौर के वन स्टॉप सेंटर से ग्राउंड रिपोर्ट

नई दिल्ली, 18 जून (हि.स.)। अक्सर कड़वे अनुभव होने के बाद जीवन की दिशा और दशा बदल जाती है। कुछ लोग इसे सकारात्मक रूप से लेते हुए न केवल अपने जीवन को संवारने में लग जाते हैं बल्कि अपने जैसी महिलाओं की हाथ बढ़ाकर मदद करने में जुट जाते हैं। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सहयोग से चल रहे इंदौर के वन स्टॉप सेंटर में ऐसी ही प्रेरणा देने वाली पीड़ित महिलाओं की कई कहानियां मिल जाएंगी। रेखा (बदला हुआ नाम) की कहानी भी किसी प्रेरणा से कम नहीं है। 36 साल की रेखा के पति ने चार साल पहले गला दबाकर सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया था। कोरोना का कठिन समय था, जख्मी रेखा जैसे तैसे इंदौर के विजयनगर स्थित वन स्टॉप सेंटर में पहुंची और वहां सात दिनों तक आश्रय लिया। वे बताती हैं कि उनके पति के साथ उनके ससुराल वालों ने उससे आधी रात में मारपीट की और घर से बाहर निकाल दिया था। आधी रात को वह वन स्टॉप सेंटर पहुंची जहां उन्हें मेडिकल सुविधा के साथ सात दिनों के लिए आश्रय दिया गया। कानूनी सहायता मिली और काउंसलिंग की गई। उसके बाद उन्हें छह महीने की ट्रेनिंग दिलाकर एक एनजीओ में नौकरी दिलवाई गई। आज भी कानूनी लड़ाई जारी रखते हुए रेखा अब अपने जैसी ससुराल पक्ष से सताई हुई महिलाओं की मदद कर रही हैं। उन्हें संबल दे रही हैं।

इंदौर के विजय नगर के वन स्टॉप सेंटर में अपने मामले की जानकारी के लिए पहुंची रेखा बताती हैं कि महिलाएं अक्सर अपने रिश्तों को बचाने की कोशिश में भूल जाती हैं कि उनका भी अस्तित्व है, उन्हें भी सिर उठाकर जीने का हक है। उत्पीड़न सहने से समस्या का हल नहीं होता, इसलिए सबसे पहले महिलाओं को अपने को सबल बनाना चाहिए और यही सीख अब वे आधी आबादी को दे रही हैं।

इसी सेंटर में एक महीने की बच्ची के साथ हर्षिता (बदला हुआ नाम) पहुंची थी। अपनी बारी का इंतजार करती हुई उसके आंसुओं से भरी आंखों में अपने भविष्य के साथ अपने बच्ची की भी चिंता साफ झलक रही थी। वे बताती हैं कि उनके पति ने उन्हें सिर्फ इसलिए घर से निकाल दिया क्योंकि उसने एक बेटी को जन्म दिया था। दो साल पहले शादी कर एक सुंदर जीवन का सपना अब टूटने लगा है। हर्षिता कहती हैं कि अब अपना और अपनी बेटी का भरन पोषण उसी को करना होगा। इकोनॉमिक्स में एमए की डिग्री हासिल करने वाली हर्षिता अब अपने साथ हुए धोखे के साथ अपनी बच्ची के लिए न्याय चाहती हैं।

हर्षिता चाहती हैं कि उसका घर बस जाए। इसी आस को लिए वे पिछले एक महीने से इसी सेंटर में आ रही हैं और कानूनी सलाह ले रही हैं। हर्षिता को उम्मीद है कि इसी सेंटर में एक दिन सुनवाई के लिए उसका पति जरूर आएगा और सब कुछ ठीक हो जाएगा।

50 साल की कौशल्या भी न्याय के लिए वन स्टॉप सेंटर पहुंची। उम्र के इस पड़ाव में भी उसका पति रोज पीटता है। घरों में बर्तन धोकर जो कुछ कमा कर लाती है, उसे भी छीन लेता है और घर से निकाल देता है। पति के इस उत्पीड़न से तंग आकर अब वन स्टॉप सेंटर में अपनी मदद के लिए आ रही हैं। कौशल्या बताती हैं कि बच्चे भी बड़े हो गए हैं, लेकिन रोज मारपीट सहने की भी सीमा है। अब वे अपने पति की समझाइश करवा कर अपने जीवन को जीना चाहती हैं। उन्हें बस उम्मीद है कि एक दिन उनके जीवन में सब कुछ ठीक हो जाएगा।

पीड़ित महिलाओं के साथ इस तरह के कई मामले रोज यहां आते हैं। वन स्टॉप सेंटर की प्रशासक डॉ. वंचना सिंह परिहार बताती हैं कि जब निर्भया फंड से पीड़ित महिलाओं के लिए देशभर में वन स्टॉप सेंटर की शुरुआत हो रही थी, तब एक सेंटर इंदौर में शुरू हुआ था। यहां वर्ष 2016 से ‘वन स्टॉप सेंटर’ से संचालित किया जा रहा है। जहां मुख्य रूप से घरेलू हिंसा एवं महिलाओं पर उत्पीडन निवारण के लिए सेंटर द्वारा सेवाएं दी जाती है। सेंटर पर महिलाओं को आश्रय, चिकित्सा, कानूनी सहायता, पुलिस सहायता एवं परामर्श सहायता एक ही स्थान से उपलब्ध कराया जाता है।

वे बताती हैं कि ‘वन स्टॉप सेंटर’ में सहायता के लिए अभी तक कुल 15,683 मामले आए जिसमें से तकरीबन 80 प्रतिशत मामलों के समाधान निकला गया है। उन्होंने बताया कि वन स्टॉप सेंटर इंदौर द्वारा घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के पुनर्वास हेतु विभिन्न प्रशिक्षणों स्वरोजगार योजनाओं जैसे मुद्रा आदि से जोड़ने उनकी नौकरी लगवाने, विभिन्न आवश्यक दस्तावेज बनवाने, आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने आदि के भी कार्य किए गए है।

महिला एवं बाल विकास विभाग की इंदौर संभाग की संयुक्त निदेशक डॉ. संध्या व्यास बताती हैं कि विगत कुछ वर्षों में महिलाओं में अपने अधिकारों को लेकर जागरूकता आई है। पिछले नौ सालों से वन स्टॉप सेंटर का संचालन किया जा रहा है, जहां से न केवल महिलाओं को हर तरह की मदद मिल रही है बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की ओर भी काम किया जा रहा है। घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की घरेलू हिंसा से सम्बंधित समस्याओं के समाधान, सफलता एवं उनके पुनर्वास पर जोर दिया जाता है। महिलाओं के इच्छा और छमता के अनुरूप उन्हें हर तरह की ट्रेनिंग देने में विभाग काम करता है, इसलिए इंदौर का वन स्टॉप सेंटर बाकी राज्यों को भी प्रेरणा दे रहा है।

उल्लेखनीय है कि वन स्टॉप सेंटर (ओएससी) मिशन शक्ति के अंतर्गत संबल वर्टिकल का एक घटक है। यह हिंसा से प्रभावित महिलाओं और संकटग्रस्त महिलाओं को निजी और सार्वजनिक दोनों ही स्थानों पर एक ही छत के नीचे एकीकृत सहायता और सहयोग प्रदान करता है। यह जरूरतमंद महिलाओं को चिकित्सा सहायता, कानूनी सहायता और सलाह, अस्थायी आश्रय, पुलिस सहायता और मनो-सामाजिक परामर्श जैसी सेवाएं प्रदान करता है। मौजूदा समय में देशभर में 802 ओएससी या तो स्वयं के भवन में या पहले से मौजूद सरकारी भवन में या किराए के आवास में संचालित हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी