तीन धर्मों के आस्था का संगम है मां भद्रकाली का मंदिर, देश-विदेश से आते हैं श्रद्धालू
चतरा, 27 सितंबर (हि.स.)। झारखंड के चतरा जिले में मां भद्रकाली का सिद्ध पीठ स्थल महाभारत कालीन है। पांडवों ने इस मंदिर में माता की आराधना की थी। दुर्गा सप्तशती में भी मां के इस स्वरूप की चर्चा है। यह स्थल तीन धर्मों की संगम स्थली है। विश्व प्रसिद्ध मोक्षदायिनी फल्गु की सहायक महाने और बक्सा नदी के तट पर प्रकृति की सुरम्य वादियों में माता भद्रकाली का मंदिर अतिप्राचीन है। यह स्थल पुराण पुरुष राजा सूरत की तपोभूमि भी है। यह जगह भगवान बुद्ध की स्मृतियों से भी जुड़ा है। वे वर्षों यहां साधना भी किये हैं।
चतरा जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर पूरब और ग्रैंड ट्रंक रोड चौपारण से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है इटखोरी प्रखंड और प्रखंड कार्यालय से एक किलोमीटर दूर पवित्र दो नदियों महाने और बक्सा के संगम तट पर बसा है भदुली नगर। सनातनियों लिए मां भद्रकाली, बौद्ध धर्म में भगवान बुद्ध की आराध्य देवी मां तारा और जैन धर्म के दसवें तीर्थंकर स्वामी शीतल नाथ की जन्म भूमि इस स्थल को माना गया है। इस मंदिर की स्थापना बंगाल के शासक राजा महेंद्र पाल ने 9 वीं शताब्दी में कराया था। एक शिलालेख में इसका जिक्र है। भारतीय पुरातत्व की ओर से यहां कराए गए खुदाई में ईसा पूर्व 200 से लेकर 12वीं शताब्दी तक के कई प्रतिमाएं और कलाकृतियां भी मिली हैं।
शारदीय नवरात्र में तीन धर्मों की संगम स्थली इटखोरी में माता भद्रकाली के दर्शन और पूजन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। भदुली अब इटखोरी के नाम से जाना जाता है। माता भद्रकाली की महिमा और ख्याति दूर-दूर तक है। देश ही नहीं विदेशों से भी मां भद्रकाली के दर्शन और पूजन के लिए लोग आते हैं। खासकर शारदीय नवरात्र में यहां पूजा अर्चना करने के लिए लोगों का तांता लगा रहता है। कहा जाता है कि माता भद्रकाली के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं जाता है। लोगों की इस मंदिर के प्रति अटूट आस्था है। दुर्गा सप्तशती में भी इस मंदिर का जिक्र है। माता काली का सौम्य रूप हैं मां भद्रकाली। इस मंदिर का इतिहास काफी प्राचीन है।
इटखोरी में 9 वीं शताब्दी में मां भद्रकाली मंदिर का निर्माण किया गया था। माता भद्रकाली की प्रतिमा अति दुर्लभ काले पत्थर को तराश कर बनाई गई है। करीब 5 फीट ऊंची आदमकद प्रतिमा चतुर्भुज है। प्रतिमा के चरणों के नीचे ब्राह्मी लिपि में श्लोक अंकित है। प्रतिमा का निर्माण 9 वीं शताब्दी में बंगाल के शासक राजा महेंद्र पाल द्वितीय के द्वारा कराया गया था। मंदिर परिसर में ही एक दुर्लभ विशाल शिवलिंग है। एक ही शिला में 1008 शिवलिंग उत्क्रीर्ण है। एक लोटा जल से 1008 शिवलिंग में अभिषेक होता है। मंदिर परिसर में कई अन्य देवी देवताओं की भी प्राचीन प्रतिमाएं हैं।
मंदिर प्रबंधन से जुड़े अशोक पांडेय ने बताया कि भद्रकाली मंदिर में झारखंड, बिहार, बंगाल सहित अन्य राज्यों से भारी संख्या में श्रद्धालु नवरात्र के मौके पर कलश स्थापना करने आते हैं। यह राज्य का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। प्रतिवर्ष यहां राजकीय इटखोरी महोत्सव का भी आयोजन होता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / जितेन्द्र तिवारी