थिएटर कमांड : मोदी सरकार के रहते सेनाओं के एकीकरण का बड़ा काम
- डॉ. मयंक चतुर्वेदी
भारतीय सेना के वर्तमान ढांचे और भविष्य की जरूरतों को लेकर इन दिनों एक नए विमर्श का दौर चल रहा है। छह सितंबर 2025 को थलसेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा कि थिएटर कमांड तो बनकर रहेगी, चाहे आज बने या कल। उनके इस वक्तव्य से पूर्व हमें वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह का बयान सामने आया था, जिसमें उनका तर्क था कि सीमित संसाधनों, खासकर कम संख्या में उपलब्ध फाइटर जेट्स और दूसरे वायुसेना संसाधनों के मद्देनज़र, थिएटर कमांड संरचना लागू करने से एयर फोर्स की ताकत बंट जाएगी और युद्धक क्षमता कमजोर होगी। इसलिए इसकी अभी आवश्यकता नहीं। किंतु इन दोनों प्रमुखों की तरह ही समय समय पर इससे जुड़े अन्य अध्ययन, विमर्श एवं विचार पढ़ने को मिलते हैं। कुछ समर्थन में तो कुछ विरोध में अपनी बात कह रहे हैं, पर यहां मसला राष्ट्र के शक्तिशाली होने से है, जहां फिर तमाम तर्क व्यर्थ और औचित्यहीन हो जाते हैं।
थलसेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी का यहां कहा, इस संदर्भ में फिर अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। वे कहते हैं, ‘‘आज के समय में लड़ाई केवल थलसेना या वायुसेना तक सीमित नहीं रही। इसमें बीएसएफ, आईटीबीपी, इसरो, रेलवे, सिविल एविएशन और इंटेलिजेंस एजेंसियों तक की भूमिका है। ऐसे में यूनिटी ऑफ कमांड यानी एकीकृत नेतृत्व की जरूरत सबसे अहम हो जाती है। यही कारण है कि भारत को एक शीर्ष कमांडर चाहिए जो सबको एक दिशा में मोड़ सके।’’
प्रधानमंत्री ने लगातार की संयुक्त कमान की वकालत
दरअसल, यह बहस अचानक नहीं उठी है। प्रधानमंत्री मोदी ने लगातार संयुक्त कमान की वकालत की है और 2024 के लोकसभा चुनावी घोषणा-पत्र में भाजपा ने इसे अपने औपचारिक संकल्प के रूप में शामिल किया था। 2019 में ही चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) का पद इसलिए बनाया गया, ताकि इस प्रक्रिया को गति मिल सके। मौजूदा सीडीएस जनरल अनिल चौहान और नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी भी इसके पक्षधर हैं। अब इस विषय की गहराई में जाएं और विचार करें कि आखिर प्रधानमंत्री से लेकर ये सेना के प्रमुख आखिर क्यों यह मांग कर रहे हैं या इसके समर्थन में हैं?
विश्व की सभी प्रमुख सेनाएं थिएटर कमांड में
इस लिहाज से भारत जब भी अपनी तुलना करेगा तो दुनिया की बड़ी सेनाओं के साथ ही करेगा, स्वभाविक है जो विश्व में इसकी लाभार्थी सेनाएं हैं उनके अनुभव इस दिशा में मायने रखते हैं और तब हम देखें तो तस्वीर साफ हो जाती है। अमेरिका, चीन, रूस, ब्रिटेन और फ्रांस जैसी सेनाओं ने पहले ही अपने-अपने सैन्य ढांचों को थिएटर कमांड के रूप में ढाल लिया है।
अमेरिका के पास 11 कमांड हैं, जो पूरी दुनिया को अलग-अलग क्षेत्रों में बांटकर वहां की सुरक्षा और सैन्य कार्रवाइयों के लिए जिम्मेदार हैं। इनमें इंडो-पैसिफिक कमांड से लेकर अफ्रीका और साइबर कमांड तक शामिल हैं। चीन ने 2016 में अपनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को पांच थिएटर कमांड्स में विभाजित किया। सेंट्रल, नॉर्दर्न, साउथर्न, ईस्टर्न और वेस्टर्न कमांड्स के तहत चीन ने सैन्य नियंत्रण को केंद्रीकृत भी किया और लचीला भी, ताकि भारत से लगी सीमाओं से लेकर ताइवान स्ट्रेट तक हर जगह वह तुरंत प्रतिक्रिया दे सके।
रूस ने अपने सैन्य तंत्र को चार रणनीतिक कमांड्स में बांट रखा है, जिनका नियंत्रण सीधा क्रेमलिन के हाथों में होता है। ब्रिटेन और फ्रांस की सेनाएं भले ही अमेरिका और चीन जैसी बड़ी न हों, लेकिन नाटो के दायरे में उनकी थिएटर कमांड संरचनाएं व्यवस्थित हैं और वे संयुक्त संचालन में दक्ष हैं।
अब इस तुलना में हम कहां हैं? इनसे तुलना करें तो भारत अभी शुरुआती दौर में है। भारतीय थलसेना, वायुसेना और नौसेना के पास कुल 17 अलग-अलग कमांड हैं। सेना और वायुसेना के 7-7 कमांड तथा नौसेना के 3 कमांड। इनके अलावा अंडमान-निकोबार कमांड और स्ट्रैटेजिक फोर्सेस कमांड जैसे दो संयुक्त ढांचे हैं, जो सीमित क्षेत्र में काम करते हैं। परंतु बड़े पैमाने पर देखें तो आज भी भारत में सैन्य संसाधनों का बंटवारा सेवा-विशेष के आधार पर है, न कि युद्धक्षेत्र या ऑपरेशन की वास्तविक जरूरत के आधार पर।
युद्ध के हिसाब से सैन्य संरचना तैयार करने में सरलता
थिएटर कमांड संरचना का मकसद यही है कि संसाधन तीनों सेनाओं के बीच बंटकर नहीं, बल्कि एकजुट होकर काम करें। उदाहरण के लिए पाकिस्तान मोर्चे पर वेस्टर्न थिएटर कमांड होगी, तो उसमें थलसेना के जमीनी दस्ते, वायुसेना के लड़ाकू विमान और नौसेना की जरूरत पड़ने पर सतर्क टुकड़ियाँ सब एक साथ काम करेंगे। इसी तरह चीन मोर्चे के लिए नॉर्दर्न थिएटर कमांड होगी, जो लखनऊ में प्रस्तावित है। समुद्रों के लिए मैरिटाइम थिएटर कमांड बनेगी, जिसका मुख्यालय तिरुवनंतपुरम में रखने पर विचार है। यानी अब युद्ध के हिसाब से सैन्य संरचना तैयार होगी, न कि केवल सेवाओं के हिसाब से।
ये परिवर्तन सामरिक, आर्थिक और तकनीकि तौर पर जरूरी है
यह परिवर्तन क्यों जरूरी है, इसका जवाब तीन स्तर पर मिलता है। पहला, सामरिक। भारत आज दोहरे मोर्चे की चुनौती झेल रहा है। पश्चिम में पाकिस्तान लगातार सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देता है, जबकि उत्तर और पूर्व में चीन की आक्रामकता हर साल नई समस्या पैदा करती है। डोकलाम, गलवान और अरुणाचल में लगातार घुसपैठ की घटनाएँ इसका प्रमाण हैं। यदि कभी एक साथ दोनों मोर्चों पर चुनौती आती है तो मौजूदा ढांचा तुरंत प्रतिक्रिया देने में समय लेगा। स्वभाविक तौर पर अलग-अलग कमांड्स के बीच तालमेल बैठाने में ही ये कीमती समय जाएगा।
दूसरा, आर्थिक। भारत का रक्षा बजट भले ही दुनिया में तीसरे नंबर पर है, लेकिन उसका बड़ा हिस्सा वेतन और पेंशन पर खर्च हो जाता है। आधुनिकीकरण और नई तकनीक पर अपेक्षाकृत कम हिस्सा बचता है। थिएटर कमांड्स बनने से दोहराव खत्म होगा, संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल होगा और रक्षा बजट का बड़ा हिस्सा दक्षता में परिवर्तित किया जा सकेगा।
तीसरा, तकनीकी और संचालनात्मक। भविष्य की लड़ाई केवल टैंकों और फाइटर जेट्स तक सीमित नहीं रहेगी। इसमें साइबर, स्पेस, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ड्रोन जैसी नई तकनीकें निर्णायक होंगी। अगर तीनों सेनाएँ अलग-अलग योजना बनाकर चलती रहेंगी तो तालमेल के साथ एक दूसरे का सहयोग लेने में समय लगता है। थिएटर कमांड ढांचा इन सबको एकजुट करेगा और संयुक्त दृष्टिकोण देगा। वास्तव में यह बहुत सोचनीय है कि यदि चीन अपने संसाधनों को पहले ही पांच थिएटर कमांड में ढाल चुका है और अमेरिका जैसे महाशक्ति ने अपनी पूरी सेना को ग्यारह कमांड्स में बांट रखा है तो भारत कब तक पुरानी व्यवस्था में अटका रहेगा?
सेना से जुड़ा ये सुधार अभी ही क्यों
मोदी सरकार के कार्यकाल में यह सुधार इसलिए ज़्यादा संभव है क्योंकि राजनीतिक इच्छाशक्ति मौजूद है। 2019 में सीडीएस की नियुक्ति से लेकर 2023 में इंटर-सर्विस ऑर्गेनाइजेशन एक्ट पारित करने तक केंद्र ने लगातार कदम उठाए हैं। यह सच है कि भारत की सेनाएँ वीरता और त्याग में दुनिया की किसी भी सेना से कम नहीं हैं। लेकिन यदि यही सेना थिएटर कमांड संरचना में काम करेगी तो उसकी ताकत कई गुना बढ़ जाएगी। युद्धक्षेत्र में एकीकृत नेतृत्व होगा, निर्णय त्वरित होंगे और संसाधनों का इस्तेमाल सबसे प्रभावी रूप में होगा। इसलिए यह सुधार वर्तमान समय की आवश्यकता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी